उदार शासक एक वीर योद्धा
कला-प्रतिभा का संरक्षक जिसे कहा
गुप्त वंश एक महान योद्धा, जिसे भारत का नेपोलियन सबने कहा।।
चंद्रगुप्त प्रथम का राजदुलारा
कुमारदेवी का पुत्र रहा
विनयशील जो मृदुलवाणी का, प्रखर बुद्धि का स्वामी हुआ।।
उत्तराधिकारी का प्रबल दावेदार
पराजित अग्रज काछा भी उससे हुआ
विजय अभियान की ख़ातिर जाना जाता, अजय-अभय एक योद्धा रहा।।
गृह कलह को शांत है करता
वक्त जिसमें बहुत लगा
शान्ति लाता विश्वास दिलाता, उचित महाराज वह एक बना।।
पराजय का कभी स्वाद चखा न जिसने
सब विजित राज्य करता गया
समूल उच्छिन्न कर देता उसका, जो चुनौती देने की भूल किया।।
प्रतिरथ न शेष धरा पर
सबको बाहुबल से उसने बांध लिया
पराक्रम, शौर्य-वीरता उसकी अद्भुत गाथा, इतिहास का लेखक लिखता गया।।
नष्ट जनपदों का पुनरुद्धार कराता
अश्वमेध यज्ञ भी उसने किया
वैदिक धर्म का जो अनुयायी, राज्य में उसके काव्य-कवियों के बुद्धिवैभव का विकास हुआ।।
दीन-हीन की रक्षा करता
दान-दक्षिणा, उपकार कार्य करता गया
अस्त्र-शस्त्र से कोषागार भरे थे, सर्वोत्तम सखा जिसका स्वभुजबल रहा।।
अधर्म का नाश हमेशा
धर्म-कर्म में जिसका विश्वास बड़ा
कोमल हृदय, विनम्र स्वभाव, जो जनता का चहेता सारी बना।।
उत्कृष्ट साहित्य का सर्जन करता
जो कविराज की उपाधि भी प्राप्त किया
कई प्रकार के सिक्के चलाया, सत्य अंकित चित्र से पता चला।।
संगीतज्ञ जो कुशल प्रशासक
सिक्कों पर वीणा बजाता वही मिला
हजारों गायों को दान में देता, करुणा से जिसका हृदय भरा।।
मैत्रीपूर्ण संबंध देश-विदेश
जो टकराया हार गया
पारिवारिक रिश्तों को महत्व देता, स्थापित कूटनीतिज्ञ गठबंधन करता गया।।
दिग्विजययात्रा निकल पड़ा तो
कई राजाओं के सम्मुख अकेला खड़ा
आर्यावर्त के मुख्य राजा जो, इतिहास ने राज-अच्युत, नागसेन जिन्हें नाम दिया।।
अधीन कर उनके सभी राज्य
पुष्कर में प्रवेश किया
दक्षिण को विजितकर उसने सारे, राज्य में अपने मिला लिया।।
हर राजा श्रृद्धा में झुकता जाता
वह विजय अभियान पर निकल पड़ा
कर चुकाते सभी पराजित राज्य, एक शानदार कमांडर वो ऐसा रहा।।
जनता की सेवा को जो धर्म समझता
घनघोर विनाशक एक रहा
क्षमा-दया-प्रेम जो खूब लुटाता, जो शरण में उसकी आन गिरा।।
निर्दयी-क्रूर राजाओं को जड़ से मिटाता
जबरदस्ती जो राज किया
बंदी राजाओं को वह छुड़ाकर, मुक्त सभी को करता गया।।
दोहरी नीति का अनुसरण करता
अधीन प्रसरण बोद्वरण से उत्तर किया
दक्षिण नीति के तहत समुद्र ने
बड़ी एवज में कर को लेकर, वापस पराजित राजा को राज्य सौंप दिया।।
प्रचंड-प्रखर रूप जब धारण करता
प्रबल शत्रु भी हार गया
विध्वंश मचाता ऐसा रण में, अरिदल रण छोड़कर भाग गया।।
संधि करता शत्रु से अपने
जो आधिपत्य उसका स्वीकार किया
उच्छिन्न करता जड़ से उसको, जिसका विरोध में उसके शीश उठा।।
ध्यानी-ज्ञानी उदार हृदय का
असहाय की सदा ही मदद किया
प्रपंच, छल-कपट उससे जो भी करता, हक बाहुबल से उसका छीन लिया।।
रौद्र रूप जब धारण करता
वहाँ विनाश-ध्वंश का अंबार लगा
तितर-बितर होती अरिदल की सेना, जब-जब युद्ध में समुद्र उतर गया।।
मित्र बनकर उसका जो भी आया
समुद्र ने उसे स्वीकार किया
विरोधी बन यदि सम्मुख आएं, उसका समूल विनाश था उसने किया।।
उपहार भेजकर संतुष्ट करते
शत्रुओं में उसका रुतबा बढ़ा
विद्रोह करने की जो कोशिश करता, झट से उसका दमन किया।।
अधीनता स्वीकारते जो गणराज्य
दे लेवी से उन्होंने प्रसन्न किया
आधिपत्य स्वीकारते पश्चिम राज्य, प्रमुख सिंहल के राजा उनमें रहा।।
उज्ज्वल चरित्र वो वचन बद्ध
जो निष्ठा अदम्य साहस का मालिक था
मानवीय गरिमा उनमें समाहित, ऐसा समुद्रगुप्त महाराज हुआ।।
घर-घर जिनकी वीरता के किस्से
विचलित शत्रु जिसने किया
युद्ध में जब-जब उतर के आया, बेबस सबको करता चला।।
संगठित होकर शत्रु आते
अगल-बगल वो झाँकता मिला
उसका बाल न बांका कर पाता, वैरी बिलख-बिलख रोता मिला।।
हारे पर कभी वार न करता
खौफ से उनके शत्रु डरा
क्षमा कर उसे आगे बढ़ता, फिर विरोध-विद्रोह न कभी किया ।।
धर्म का रक्षक अधर्म का भक्षक
विनम्रता धारण सदा किया
संधि करता आगे बढ़ता, कभी युद्ध का न जिसका लक्ष्य रहा।।
अतुलनीय शोभा अद्भुत पराक्रम
अविजित कभी जो योद्धा रहा
हरा सका न जिसको कोई, वह ऐसा वीर भारत का एक हुआ।।
अखंड भारत के निर्माण में जिसने
अदम्य-अखंडित साहस किया
कीर्ति फैली चहुँ ओर थी, एक महान योद्धा समुद्रगुप्त रहा।।
स्व्रचित व मौलिक रचना
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online