1212--1122--1212--22
अदब की बज़्म का रुतबा गिरा नहीं सकता
ग़ज़ल सुनो! मैं लतीफ़े सुना नहीं सकता
ग़मों के दौर में जो मुस्कुरा नहीं सकता
वो ज़िंदगी से यक़ीनन निभा नहीं सकता
ख़ुद अपने सीने पे ख़ंजर चला नहीं सकता
हर एक दोस्त को मैं आज़मा नहीं सकता
वो जिसकी ताल ही है मेरी धड़कनों का सबब
वही तराना-ए-उल्फ़त मैं गा नहीं सकता
वो आसमाँ का सितारा है, मैं ज़मीं का परिंद
मैं ख़्वाब में भी क़रीब उसके जा नहीं सकता
कहानी ख़त्म की, उसने ये बात कहते हुए
उसे मैं चाह तो सकता हूँ, पा नहीं सकता
मेरी ज़बान पकड़ते हैं, मेरे ऐब 'दिनेश'
मैं ज़िंदगी की कहानी सुना नहीं सकता
दिनेश कुमार
( मौलिक और अप्रकाशित )
Comment
आदरणीय दिनेश जी बहुत बढ़िया प्रस्तुति। हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर।
आ. भाई दिनेश जी, सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।
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