दोहा पंचक. . . . . गिरगिट
बात- बात पर आदमी ,बदले रंग हजार ।
गिरगिट सोचे क्या करूँ, अब इसका उपचार ।।
गिरगिट माँगे ईश से, रंगों का अधिकार ।
लूट लिए इंसान ने, उसके रंग अपार ।।
गिरगिट तो संसार में, व्यर्थ हुई बदनाम ।
रंग बदलना आजकल, इंसानों का काम ।।
गिरगिट बदले रंग जब , भय का हो आभास।
मानव बदले रंग जब, छलना हो विश्वास ।।
शायद अब यह हो गया, गिरगिट को आभास ।
नहीं सुरक्षित आजकल, इंसानों में वास ।।
सुशील सरना / 16-7-24
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
//सोचें पर असहमत//
अगर "सोचें" पर असहमत हैं तो 'करें' की जगह "करूँ" करना होगा क्योंकि 'करें' बहुवचन की तरफ़ इशारा कर रहा है ।
जनाब सुशील सरना जी आदाब, अच्छे दोहे लिखे आपने, बधाई स्वीकार करें ।
'गिरगिट सोचे क्या करें' --'सोचें'
'व्यर्थ हुई बदनाम'--'हुए'
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