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उम्र के इस पड़ाव पर

.
उम्र के इस पड़ाव पर
खड़ा हूँ ये सोच कर
क्या खोया क्या पाया
समझूँ सबकुछ देख कर
वही पर हूँ
जहाँ पर था
उस समय भी
मैं ही था
आज भी हूँ
उस समय
मैं बालक था
लड़कपन और ठिठोली करता
आज भी हूँ
वही बालक
मगर अंतर हैं
तब वो पुत्र था
आज ये पिता है.


२.

मैं स्कूल नहीं जाऊँगा ,
जब ये शब्द मुझे याद आते हैं
कसम से
बहुत याद आते हैं.
दीदी कहती थी चौकलेट दूँगी
चल स्कूल, तेरा बैग मैं ढोऊँगी
तब मैं
क्या-क्या नहीं सुनाता था
बहाने खूब बनाता था
हरदम पेट में दर्द रहता था
आजभी उस दर्द को बहुत महसूस करता हूँ.
पागलपन वो सारा कैसे भुलाऊँगा

मैं स्कूल नहीं जाऊँगा
मैं कैसे सब भुलाऊँगा ??

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Comment

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Comment by Rash Bihari Ravi on July 26, 2011 at 10:51am

bahut bahut dhanyabad sir ji


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 26, 2011 at 10:35am

कहना  होगा रविजी आपके स्पंदनों में भावनाएँ हिलोर मारती हैं. बालपन की स्मृतियों को आज के परिप्रेक्ष्य में समझना और उन्हें शब्दों में सहेजना आपमें एक जागरुक बालक के होने का द्योतक है. आपकी दोनों रचनाएँ सतत प्रयास का भान कराती हैं. हार्दिक शुभकामनाएँ.

Comment by Rash Bihari Ravi on July 26, 2011 at 9:37am

dhanyabd sir ji


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 26, 2011 at 9:35am

गुरु जी, आपकी दोनों कविताये एक से अधिक बार पढ़ा जाने क्यों हर बार नई सी लगती है , भावनाओं का सुंदर सम्प्रेषण है, बधाई स्वीकार करे | 

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