कहाँ आज़ाद हैं हम
हजारों हर तरफ ग़म
भ्रष्टाचार के टीले - पहाड़
और जनता की नित हार
अवनति का शोर
घुप्प अन्धेरा घोर
कहाँ उम्मीद
गहरी नींद
हुक्काम सो रहे
हम रो रहे
यही थी तुम्हारी कल्पना ?
रामराज की ऐसी अल्पना ??
गरीबी अमीरी की ऐसी खाई
प्याज रोटी की महंगाई
हमारी हाय में अब स्वर कहाँ है ?
हज़ारों प्रश्न हैं उत्तर उत्तर कहाँ है ??
== अभिनव अरुण
Comment
शन्नो जी आभारी हूँ आपकी टिप्पणी मेरा उत्साहवर्धन करेगी !
अरुण, आपकी रचना में बेकल हृदय की जैसे चीत्कार हो....बहुत सुंदर अभिव्यक्ति की है. इस दिवस की शुभकामनायें.
हमारी हाय में अब स्वर कहाँ है ?
हज़ारों प्रश्न हैं उत्तर उत्तर कहाँ है ??
इस रचना के सभी प्रश्न अपने आप से ही हैं. जिन प्रश्नों को हमने हमेशा नकारा आज उन्हीं को अपनी गर्दन के गिर्द कसता हुआ महसूस कर रहे हैं. रचनाकार की पेशोपेश भी यही है. जाने हम इन प्रश्नों के उत्तरों के प्रति कब उत्तरदायी होंगे.
एक सशक्त अभिव्यक्ति के लिये बधाई.
अरुण भाई, आजादी का बहुत ही व्यापक अर्थ है और कई दृष्टिकोण भी , जिस दृष्टिकोण से आपने रचना प्रस्तुत किया है उसके लिए आपको बहुत बहुत बधाई और स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामना स्वीकार करें |
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