For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कविता :- हम नादान ?

कविता :- हम नादान ?

 

कदम आगे कदम पीछे

कभी उभरे कभी बिछे

हमीं इंसान

हम नादान ?

कभी मुखरित कभी कुंठित

हैं अंतर्द्वंद्व में गुम्फित

हमीं नादान

हम इंसान ?

कहाँ है अश्व  सी तेजी

नहीं गर्दभ सा धीरज भी

है बस खच्चर हमारा ज्ञान

हमीं इंसान

हम नादान ?

 

         -  अभिनव अरुण (270811)

Views: 673

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on September 5, 2011 at 12:39pm
bahut bahut dhanyavaad Bagi Ji !

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 5, 2011 at 11:28am

खुबसूरत रचना , अभिव्यक्ति के सोपान पर रुचिकर कविता , बधाई अभिनव जी |

Comment by Abhinav Arun on September 2, 2011 at 1:24pm

आपको कविता पसंद आई आभारी हूँ आदरणीया मोनिका जी एवं वंदना जी !!

Comment by monika on September 1, 2011 at 5:39pm

अरुंण जी बहुत अच्छी कविता. बहुत से सवाल और ढेर सारे विचारो को जन्म देती हे ये कविता शायद हम सभी इन सवालो के समाधान खोज पाएँगे एसी उम्मीद के साथ आपको अच्छी कविता के लिए धन्यवाद देती हू.

Comment by Abhinav Arun on September 1, 2011 at 9:12am
bahut abhaar Ashish ji.apki tippani mere liye prerna hai.
Comment by आशीष यादव on August 31, 2011 at 11:03pm

अरुण सर,
मैंने पहले भी कहा किया है की आप को पढना सुखद अनुभव होता है|
आज भी आप की ये कविता बेहद अच्छी लगी|
आपकी लेखनी को नमन|

Comment by Abhinav Arun on August 27, 2011 at 4:42pm
Sri Saurabh Ji apne kavi aur kavita ke marm ko mahsoos kiya aur bebaak tippani ki ABHAARI hoon.rachnakar aur samikshak dono ka apna dharm hai par saty shashwat hai.aur uski vijay avashyambhavi !

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 27, 2011 at 11:37am

अरुण अभिनवजी, सर्वप्रथम, वैचारिक किंकर्त्तव्यविमूढ़ता को सामने लाती इस रचना पर मेरी बधाइयाँ लें.

संतोष हुआ, कि आपने प्रस्तुत रचना के संदर्भ में अपनी मनोदशा और स्थिति को भी स्पष्ट कर दिया है. और हम जैसे तमाम पाठकों को यह स्पष्ट हो जाता है कि आपकी रचना एक प्रस्तुतकर्त्ता के भ्रमित मनस और कचोटते अंतर के उद्वेलन का प्रस्तुतिकरण मात्र है, कोई आरोपित निर्णय नहीं.  न ही, किसी टुच्चे अहंकार को तुष्ट करने का थोथा प्रयास.     ...साधु-साधु.

 

//कभी मुखरित कभी कुंठित

हैं अंतर्द्वंद्व में गुम्फित

हमीं नादान

हम इंसान ?//

इन पंक्तियों में निहित निरीहता को शिद्दत से महसूस किया है हमने.  उद्विग्न भावनाओं को शब्द देने के इस सफल प्रयास पर मेरी हार्दिक बधाई.

 

आजके सामाजिक, राजनैतिक तथा मानवीय परिदृश्य में कुछ भी एकदम से कहना प्रासंगिक नहीं है, विशेषकर तब, जब लिये गये निर्णय और मानवीय भावनाओं के बीच सामंजस्य नहीं बन पा रहा हो,  या न बनने दिया जा रहा हो.

पारस्परिक संबन्धों के अपने मायने होते हैं. लेकिन आज सम्बन्ध तक शातिर गणना की बलि चढ़े दीख रहे हैं, तो, किसी  जन, समुदाय या ’वाद’ की ओर संशयात्मक उंगली दिखाना मानसिक प्रौढ़ता का परिचायक कत्तई नहीं होगा.

 

अरुण अभिनवजी, जिस कैनवास पर आपने लेखकीय कूँची उठायी और चलायी है, उसके लिहाज से प्रयुक्त हुए शाब्दिक रंग पृथक-पृथक होते हुये भी वस्तुतः अपनी अलहदी इकाई बनाये नहीं रख पा रहे हैं, यही कारण है कि आपकी ज़मीन पर मैंने इतना कुछ कह डाला है.   मेरी समझ से यह किसी रचना की सफलता है. ..   धन्यवाद.

 

Comment by Abhinav Arun on August 27, 2011 at 9:55am

मैं स्वीकार करता हूँ ...इस मुद्दे पर मेरा विचार भी बौद्धिक विभ्रम का शिकार है | मन कुछ कहता है मानस कुछ ... उसी की एक छोटी सी अभिव्यक्ति | इसे एक साहस भी कह सकते हैं ... आज खुलकर सामने कौन आ रहा आप खुद ही देखिये सबका चश्मा फोटो क्रोमेटिक हो गया लगता है  :- >>

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
9 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
5 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
17 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
19 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
20 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service