For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आँखों में आँख डाल रहे जो गुमान की,
यारों है उनको फिक्र जमीं आसमान की.

 

जिंदादिली का राज कलेजे में है छिपा,
खुद पे है ऐतबार खुशी है जहान की.

 

आयी जो मस्त याद चली झूमती हवा,

नज़रें मिली तो तीर चले बात आन की.

 

घायल हुए जो ताज दिखा संगमरमरी,

आई है यार आज घड़ी इम्तहान की.

 

आखिर वही हुआ जो लगी इश्क की झड़ी, 

कुरबां वतन पे आज हुई जां जवान की.

 

--अम्बरीष श्रीवास्तव

Views: 791

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 5, 2011 at 3:35pm

स्वागत है भाई बागी जी ! 'इस बहर पर बहुत से शेर कहे गए थे परन्तु इश्क पर कुछ भी नहीं कहा गया'...... कुछ ऐसी ही मांग की गयी थी.. जिसे पूरा करने का यह एक प्रयास मात्र है ...आपकी तारीफ़ पाकर अपना यह श्रम सार्थक हुआ मित्र !  आपक तहे दिल से शुक्रिया ! जिंदाबाद जिंदाबाद!  जय ओ बी ओ :-)

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 5, 2011 at 3:28pm

 स्वागत है भाई वीनस जी ! आप जैसे विद्वान की सराहना पाकर इस ग़ज़ल को कहने में लगा हुआ श्रम सार्थक हो गया मित्र ! इस हेतु  हृदय से  आभार स्वीकारें !

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 5, 2011 at 3:15pm

आदरणीय भाई सौरभ जी ! आप द्वारा की गयी विस्तृत समीक्षा सदैव ही हृदय का स्पर्श कर लेती है ! इस विस्तृत समीक्षा के लिए आपका  हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ ! जय हो !   :-)

Comment by Rash Bihari Ravi on September 5, 2011 at 2:58pm

आँखों में आँख डाल रहे जो गुमान की,
यारों है उनको फिक्र जमीं आसमान की.

 

sir sab ke sab ek se bad kar ek bahut badhia

 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 5, 2011 at 10:06am

भाई अम्बरीश जी , क्या कहने इन खुबसूरत अशआर के, सभी एक से बढ़कर एक, मैं तो पूरी ग़ज़ल तरन्नुम में पढ़ता चला गया, धुन भी वही जानी पहचानी ........हर फिक्र को धुएं ......कई अटकाव नहीं , कही भी भटकाव नहीं, बहर की कसौटी पर खरी, कहन भी उम्द्दा , कुल मिलाकर जिंदाबाद ग़ज़ल, दाद कुबूल करें.....जय हो ! 

Comment by वीनस केसरी on September 5, 2011 at 2:12am

वाह वाह वाह

मुबारकां जी मुबारकां
एक सधी हुई,,, कसी हुई और  सजी हुई ग़ज़ल पढवाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 5, 2011 at 1:41am

//आँखों में आँख डाल रहे जो गुमान की,
यारों है उनको फिक्र जमीं आसमान की.//

बहुत सही मतला कहा आपने भाई साहब. एक सही सोचने वाला ही मन की बेतरतीबियों की दुरुस्तगी की सोचता है. बहुत खूब कहा आपने. गुमान और अहं से बड़ी बेतरतीबी और क्या होगी भला..??

 

//जिंदादिली का राज कलेजे में है छिपा,
खुद पे है ऐतबार खुशी है जहान की.//

बस इस मस्त जीवन को सलाम.. मन चंगा तो कठौती में गङ्गा..बहुत सही बाँधा आपने इस शे’र को.. बधाई

 

//आयी जो मस्त याद चली झूमती हवा,

नज़रें मिली तो तीर चले बात आन की.//

अय-हय.. अय-हय ! इसे कहते हैं गुरुता. तीरेनज़र चला के कहें आन रहे बना.. वाह !

 

//घायल हुए जो ताज दिखा संगमरमरी,

आई है यार आज घड़ी इम्तहान की.//

वाह.. बहुत खूब.. किसीकी चाहे जो हो कुव्वत कमसेकम हम ग़रीबों का मज़ाक तो न उड़ाये.. . बहुत बढिया बाँधा इस कहन को आपने भाईसाहब.

 

//आखिर वही हुआ जो लगी इश्क की झड़ी, 

कुरबां वतन पे आज हुई जां जवान की.//

इश्क़ की परवाज़ है.. जान निसार कर. आपने इश्क़ की पाकीज़ग़ी को महसूसा है. वतन की फिक्र से बढ़ कर और इश्क़ क्या.. वाह.. वाह.. वाह.. !

 

बह्र के लिहाज से सधे अशार कहन के लिहाज से भी धनी हैं.  इस ग़ज़ल के लिये आपको मुबारकबाद देता हूँ.  इश्क़ की दुनिया यूँही पाक रहे. आमीन.

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service