हमें जो अर्थ प्रजातंत्र का बताए हैं
उन्हीं के पुत्र विरासत में मुल्क पाए हैं
वही नसीहतें देते मिले गरीबों को
जो मुल्क बेच के खाए - पिए अघाए हैं
भला- बुरा न समझते हम इतने हैं नादाँ
सही, सही है गलत को गलत बताए हैं
यही किया है हमेशा कि अपने दिल की सुनी
यही हुआ है हमेशा कि चोट खाए हैं
- वीनस केशरी
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वही नसीहतें देते मिले गरीबों को
जो मुल्क बेच के खाए - पिए अघाए हैं kya umda sher kha hai lazwab
हमें जो अर्थ प्रजातंत्र का बताए हैं
उन्हीं के पुत्र विरासत में मुल्क पाए हैं
bahut khubsurat wah kya bat hain raj tantr ki thhath ham prajatantr me utha rahe hain
//हमें जो अर्थ प्रजातंत्र का बताए हैं
उन्हीं के पुत्र विरासत में मुल्क पाए हैं//
क्या नज़र और क्या कहन कि ’पर उपदेसे कुसल बहुतेरे’ को बताता ये मतला.
खाए-पिए-अघाए का बहुत ही सुन्दर प्रयोग. बहुत खूब.
ग़ज़ल कुछ और शे’र मांगती है.
गरीब जान के हमको ना तुम मिटा देना
तुम्ही ने दर्द दिया है तुम्ही दवा देना,
वीनस भाई यह दो पक्ति फ़िल्म छू मंतर का है, आपकी खुबसूरत ग़ज़ल मैं इसी धुन में पढता चला गया, वाह भाई वाह आनंद आ गया, कहन भी जोरदार है, बधाई स्वीकार करें |
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