For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आतंकवाद की भेंट चढ़ गई एक लव स्टोरी

वो मासूम सा लड़का उसे बचपन से भला लगता था ,छोटी छोटी सी आँखें,घुंघराले बाल ,वो हमेशा से छुप छुप के उसे देखती आई थी ,जब वो अपना बल्ला  लेकर खेलने जाता, अपने दीदी की चोटी खींचकर भाग जाता, मोहल्ले के बच्चो के साथ गिल्ली डंडा खेलता हर बार वो बस उसे चुपके से निहार लिया करती थी. जैसे उसे बस एक बार देख लेने भर से इसकी आँखों को गंगाजल की पावन बूदों सा अहसास मिल जाता था . घर की छत  पर खड़ा होकर  जब वो पतंग उडाता वो उसे कनखियों से देखा करती थी जेसे जेसे उसकी पतंग आसमान में ऊपर जाती, इसका दिल भी जोरों से धड़कने लगता और फिर वो भागकर नीचे आ जाती की इंजन की तरह आवाज करते इस दिल की आवाज कही आस पास के लोगो को ना सुनाई दे कितनी पगली थी वो जानती ही नहीं थी दिल की आवाज़ बस उसी  को सुनाई देती है जिनका दिल आपके दिल से जुड़ा होता है बाकि लोग तो बस शब्द सुन सकते है  अनंत आकाश में हमेशा  गूंजने वाले शब्द....

जब उम्र ने थोडा बदलाव लिया ,शरीर के साथ मन भी बदलने लगा ,बातों के साथ नजरें भी बदलने लगी ,गली के लड़कों के तेवर और माँ की सीखें भी बदलने लगीं पर वो नहीं बदली वो बस उसे निहारा करती थी चुपके से.  बस अंतर इतना आया था की उसके इस तरह चुपके से देखने की आदत शायद वो ताड़ने लगा था ,कभी कभी कनखियों से वो भी उसे देख लेता जेसे मौन संवाद की प्रतिक्रिया मौन में ही दे देना चाहता हो.


दोनों नहीं जानते थे ये क्या था ,बस इतना जानते थे की ये मौन संवाद अच्छा लगने लगा था दोनों को. कभी कभी जब दोनों आमने सामने पड़ जाते तो नजरे मिलती और साथ ही झुक भी जाती जैसे अगर ज्यादा देर तक मिली रह गई तो एक दुसरे का चुम्बक उन्हें दूर ना होने देगा.

दोनों की उम्र बढती जा रही थी और ये मौन संवाद भी  मुस्कुराहटों में बदलने लगा था पर शब्द अभी भी इस मौन संवाद की जगह नहीं ले पाए थे ,दोनों कॉलेज जाते थे लड़का वकील बनना चाहता था इसलिए ला कॉलेज में दाखिला  लिया और लड़की अपनी डाक्टरी की पढाई में लग गई, दोनों बस एक दुसरे को देखकर मुस्कुराते,और फिर नजरे चुरा लेते,धीरे धीरे दोनों समझने लगे थे की उनके अन्दर क्या पनप रहा था पर इस पनपते अंकुर को दोनों दुनिया से छुपा रहे थे शायद या इन्तेजार कर रहे थे सही समय का ,पर इससे भी ज्यादा इन्तेजार उन्हें इस बात का था की वो खुद ठीक से समझ पाए की क्या था ये?

बरसात की सुबह थी वो. आज उसने सोचा था वो लड़के ने आज सोचा था सुप्रीम कोर्ट का अपना काम निपटाकर वो शाम को वापस लौटते हुए उससे एक बार बात जरूर करेगा ,चाहे शुरुवात  ही पर इस मौन संवाद को में थोड़े शब्दों की लड़ियाँ पिरोएगा.. आज उसने एक छोटी सी पर्ची बनाई और रास्ते में जब वो मिली तो उसके हाथ में थमाकर निकल गया लड़की ने चारों तरफ नजर घुमाते हुए उस पर्ची को पढ़ा उसमे लिखा था "शाम को वापस आते समय कालोनी के पार्क में मिलना बात करनी है.".पर्ची खोलते ही उसका दिल जोरो से धड़कने लगा, एक अजीब से अहसास ने दिल को भर दिया,बस बार बार यही सोचती थी आज उससे बात होगी क्या बात होगी , केसे  होगी वहा तक वो पहुँच ही नहीं पा रही थी.बस बात होगी मौन टूटेगा इसी की ख़ुशी उसके पैरों को जमीन पर नहीं पड़ने दे रही थी.

बस इसी उधेड़बुन में वो कॉलेज चली गई शाम को जल्दी से वापस आकर पार्क में बैठ गई ,दिन में दिल्ली में हुए आतंकवादी  धमाके की खबर पर लोग बातें कर रहे थे आखिर उसका शहर दिल्ली से थोड़ी ही दूरी पर था सो चर्चा होना भी चाहिए थी. उसे भी बड़ा दुःख था की लोगो की जानें चली गई ,पर वो फिर भी उसका इन्तेजार कर रही थी और ये इन्तेजार की ख़ुशी उसे बड़ा सुकून दे रही थी ,एक घंटा बीता ,२ घंटे बीत गए अँधेरा छाने लगा पर वो ना आया ,घर से २ बार माँ का फ़ोन आ गया  था की आज उसे इतनी देर क्यों हो रही है पर वो एक्स्ट्रा क्लास का बहन बनाकर वहा बैठी उसकी राह ताकती रही .आखिर वो ना आया और वो उठकर घर आ गई .

उसने देखा गली में मुर्दनगी छाई है और कही बस रोने की आवाजें आ रही है, उसने सोफे पर बैग फेकते हुए माँ से पूछा  क्या हुआ है माँ? माँ ने कहा वो कोने वाले  शर्मा  है ना उनका बेटा आज दिल्ली गया था कोर्ट के काम से  वहा बम धमाका हो गया बिचारा लड़का  वापस नहीं आया. मैं जा रही हू उनके घर तू चलेगी मेरे साथ? पर ये सब सुनने के लिए उसे होश ही कहा था वो तो वही जमीन पर बैठ गई थी, उसके लिए अब किसी शब्द का कोई मतलब नहीं था जिसके शब्द सुनने के लिए वो बचपन से तरस गई थी वो उससे अबोला ही चला गया.....क्या कहे वो इस रिश्ते को, क्या नाम दे वो तो रो भी नहीं सकती .....

बस यही सोचती रही हमेशा सुना था आतंकवादी हमलों में जब कोई अपना जाता है तो सच्चा दर्द पता चलता है पर उसका जो चला गया वो तो पूरी तरह से अपना नहीं था पर बचपन से लेकर आज तक उससे ज्यादा अपने ढूँढना भी मुश्किल है उसके लिए ,वो अकेला नहीं गया अपने साथ उसके बचपन की यादें,उसकी आँखें,उसके अहसास ,उसका जीवन और उसकी वो मांग जो शायद उसके नाम के सिन्दूर  से भर सकती  थी सब सूना कर गया.....और वो ?वो बिचारी तो रो भी नहीं सकती  किस रिश्ते से रोए वो.....? अब तो ये भी नहीं कह सकती की लौट आओ तुम क्यूंकि शब्दों ने तो कभी जगह ली ही नहीं उनके बीच.........

 

Views: 341

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, आपकी रचना का स्वागत है.  आपकी रचना की पंक्तियों पर आदरणीय अशोक…"
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
22 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद    [ संशोधित  रचना ] +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
23 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी  रचना को समय देने और प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार ।"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुसार सुंदर छंद हुए हैं और चुनाव के साथ घुसपैठ की समस्या पर…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी चुनाव का अवसर है और बूथ के सामने कतार लगी है मानकर आपने सुंदर रचना की…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी हार्दिक धन्यवाद , छंद की प्रशंसा और सुझाव के लिए। वाक्य विन्यास और गेयता की…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service