बस प्रेम सिखाने आई थी ??
जो प्रेम सिखाकर जाती हो ??
ख्वाबों में आकर नींद के थैले से
यूँ चैन चुराकर जाती हो...
तुमने ही सिखाया था मुझको
सूनी तन्हा रातो मे जगना...
चंदा में देखना प्रियतम को
उँगलियो पर तारों को गिनना...
इक पाठ पढ़ाया था तुमने कि
प्रियतम हृदय मे बसता है
पर तोड़ नियम अपना खुद तुम
नस नस मे उतरती जाती हो
बस प्रेम सिखाने आई थी ??
जो प्रेम सिखाकर जाती हो ??
ख्वाबों में आकर नींद के थैले से
यूँ चैन चुराकर जाती हो...
करो याद चाँदनी रात वो तुम
जब हम तुम तन्हा थे छत पर
मापा था प्रेम को जब हमने
अंबर के तारों को गिनकर
घंटों मौन, इक दूजे को जब
हमने देखा था आँखों आँखों मे
उस दिन सीखा था कैसे सुनते हैं
आँखों की बातें आँखों से
पर आज कहो मैं कैसे सुनूँ
जब आँख छुपाकर जाती हो ??
बस प्रेम सिखाने आई थी ??
जो प्रेम सिखाकर जाती हो ??
ख्वाबों में आकर नींद के थैले से
यूँ चैन चुराकर जाती हो...
Comment
thanks ashish bhai...:)
vikram bhai, achchhi rachna. bagi ji ne sahi kaha ki kawita mohak hai, aur prem ewam shikayat ke sath virah ki bhi hai. badhai aapko.
बहुत बहुत शुक्रिया सर ......आप जैसे वरिष्ठ जनों का प्रेम और मार्गदर्शन मिलता रहेगा तो शायद कुछ लिखना सीख जाऊँ...प्रेम बनाए रखें॥:)
इक पाठ पढ़ाया था तुमने कि
प्रियतम हृदय मे बसता है
पर तोड़ नियम अपना खुद तुम
नस नस मे उतरती जाती हो
विक्रम जी, बहुत ही मोहक रचना है, कविता में शिकायत भी है प्रेम भी है और विरह भी, इस खुबसूरत अभिव्यक्ति हेतु बधाई स्वीकार करे |
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