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नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)

 

नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)

लेखक - सतीश मापतपुरी

--------------- अंक - तीन  ---------------------

वह बड़ी हो चुकी थी. सदैव की भाँती एक दिन वह आकर मेरे बगल में बैठ गयी . मैं कुछ परेशान था .

"मुझसे नाराज है अंकल?" उसने पूछा .

"नहीं तो . सर में हल्का दर्द है ."  मैंने यूं ही उसे टालने के ख्याल से कह दिया था . वह मेरा सर दबाने लगी थी अचानक उसकी मां मेरे कमरे में चली आयी . उनके माथे पर आ रहे शिकन इस बात के प्रमाण थे की शालू की उपस्थिति और उसका यह व्यवहार उन्हें अच्छा नहीं लगा था . मां को देखते ही शालू उठकर चली गयी . दूसरे दिन न तो वो मेरे कमरे में आयी और न ही मुझे कहीं दिखाई पड़ी . जब शाम को संजीव मेरे पास आया तो मैं शालू  के सम्बन्ध में उससे पूछा और उसका जवाब सुनकर मुझे यूँ लगा जैसे किसी ने सरे बाजार मुझे नंगा कर दिया हो . बात की गंभीरता से अनभिज्ञ बालक बोला " मां ने शालू  दीदी को मना किया है की वह न तो आपसे ज्यादा बातचीत करे और न आपके पास आये ." मेरी अंतरात्मा में हलचल मच गयी . मैनें उसी क्षण निश्चय कर लिया कि जैसे भी हो शालू से अपना सम्बन्ध तोड़ लूंगा . दो दिनों तक न तो वह मेरे पास आयी और न ही मैं उससे मिला . तीसरे दिन जब मैं एक पत्रिका के अनुरोध पर उसके लिए निबंध लिख रहा था अचानक शालू मेरे बगल में आकर बैठ गयी . मैं घबड़ा गया .कल तक शालू के साथ घंटों कहकहे लगाने वाला दिल बगल में उसके बैठ जाने मात्र से बुरी तरह धड़क उठा .

"शालू , तुम्हे यहाँ नहीं आना चाहिए था ." बिना उसकी तरफ देखे ही मैंने कहा .

"मुझसे नाराज है अंकल? " अपने हाथ से मेरा मुंह अपनी तरफ घुमाते हुए उसने पूछा .

"जब तुम्हारी मां मना करती है तो फिर यहाँ आने की क्या जरूरत है?"

"अंकल, मैं तो यहाँ पहले भी आती थी, मां अब मना क्यों करती हैं? "

"मुझे क्या मालूम ." मैंने काफी रुखाई से कहा ."

"इतनी जल्दी मुझे भूल गए अंकल किन्तु , मैं आपको कैसे भूल सकती हूं " मैनें देखा ,उसकी आँखों में अश्कों का सैलाब उमड़ पड़ा था .    ......................... (क्रमशः)

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Comment

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Comment by satish mapatpuri on October 12, 2011 at 12:08am
आदरणीय सौरभ जी एवं अरुण जी, हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया
Comment by Abhinav Arun on October 2, 2011 at 1:27pm

बढियां ज़मीन तैयार हुई है सतीश जी शानदार शुरुआत ... उत्कंठा बनी है ... बधाई और शुभकामनाएं !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 2, 2011 at 12:23pm

भाई सतीशजी, कहानी ने पूरा ग्रिप पकड़ रखा है. बहुत अच्छे.

कृपया ध्यान दे...

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