नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)
लेखक - सतीश मापतपुरी
--------------- अंक - चार ---------------------
मैं सोच नहीं पा रहा था की इस नयी परिस्थिति का किस तरह सामना करूँ . शालू जाने लगी तो मैनें उसे पकड़ कर पुनः बिठा दिया .
" शालू ,मुझे गलत मत समझो. मेरे दिल में तुम्हारे लिए अब भी वहीँ स्नेह है, पर मां की आज्ञा तुम्हें माननी चाहिए."
शालू का मेरे यहाँ आना-जाना अब काफी कम हो गया था. वह मेरे यहाँ तब ही आती थी जब उसकी मां और मधु या तो घर से बाहर हों या सो गयी हों . मैं अपनी तरफ से शालू से दूर रहने का भरसक कोशिश करने लगा था. न जाने क्यों, मुझे आने वाला हर पल डरावना लगता था . एक रोज रात को दस बजे शालू मेरे कमरे में आयी.
"शालू, भगवान के लिए चली जाओ यहां से ." मैनें हाथ जोड़ते हुए कहा.
"क्यों," वह मेरी बगल में बैठते हुए बोली.
"यह क्या पागलपन है. इतनी रात गये तुम्हे यहाँ नहीं आना चाहिए था ."
"यदि मुझे आपसे मिलने से रोका नहीं जाता तो फिर रात में मैं छिपकर आती ही क्यों? चाहे कोई कुछ भी कहे मैं आपसे अपना पवित्र सम्बन्ध नहीं तोड़ सकती ." उसने मेरे हाथों को अपने हाथों में ले लिया था. मैं कुछ कहता इसके पहले ही बुरी तरह चौंक पड़ा , दरवाजे पर मधु खड़ी थी ............(क्रमशः)
Comment
Thank u Ashishji
ab tk ki kahani mjhe achchhi lagi. pawitra pyar ko log kya nahi samajh lete hai.
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