मैं हूँ सामान्य वर्ग का एक सामान्य अधेड़
न, न, अभी उम्र पचास की नहीं हुई
केवल पैंतीस की ही है
मगर अधेड़ जैसा लगने लगा हूँ
मेरी गलती यही है
कि मैं विलक्षण प्रतिभा का स्वामी नहीं हूँ
न ही किसी पुराने जमींदार की औलाद हूँ
एक सामान्य से किसान का बेटा हूँ मैं
बचपन में न मेरे बापू ने मेरी पढ़ाई पर ध्यान दिया
न मैंने
नौंवी कक्षा में मुझे समझ में आया
कि इस दुनिया में मेरे लिए कहीं आशा बाकी है
तो वह पढ़ाई में ही है
तब मैंने पढ़ना शुरू किया
मगर बहुत मेहनत करने के बाद भी
हाई स्कूल में सेकेंड डिवीजन पास हुआ
फिर मैंने और मेहनत की
इंटर, बीए, एमए भी पास किया
मगर सब सेकेंड डिवीजन
फिर मैंने विभिन्न नौकरियों के लिए
इम्तेहान देने शुरू किए
मगर मैं सामान्य वर्ग का हूँ
हाँ एक बार आईएएस का प्री जरूर क्वालीफाई किया था मैंने
तब मेरी माँ ने मिठाई बाँटी थी
उसकी आँखों में आशा की एक किरण जागी थी
तीस साल का होते ही
सारे इम्तेहानों के लिए बूढ़ा हो गया मैं
सामान्य वर्ग का हूँ ना
वरना पाँच साल तो और मिल ही जाते
फिर मैंने शहर में कोचिंग पढ़ाना शुरू किया
मगर वहाँ अध्यापक कम
और मैनेजर साहब का घरेलू नौकर ज्यादा था
और तनख़्वाह में तो खाना भी मुश्किल से खा पाता था
मैं घर चला आया
बगल के गाँव की अनपढ़ रधिया से बापू ने ब्याह दिया
और मैंने शुरू किया गाँव के बाजार में
चाट बेचना
रधिया पानीपूरी बड़ा अच्छा बनाती है
दिन भर में सारी बिक जाती है
और हम लोगों को पेट भर खाना मिल जाता है
एक बेटा हुआ मेरे
उसको मैंने अभी से एबीसीडी पढ़ाना शुरू कर दिया है
वो कहते हैं ना
घिसते रहने से रस्सी भी पत्थर पर निशान छोड़ देती है
शायद वो बचपन से घिस घिस कर पढ़ ले
तो कोई छोटी मोटी नौकरी मिल जाए उसे
बेचारा सामान्य वर्ग के सामान्य बाप का सामान्य बेटा
Comment
अम्बरीष जी और अरुण जी, आपने इस रचना को अपना आशीर्वाद दिया इसके लिए आभारी हूँ
//वो कहते हैं ना
घिसते रहने से रस्सी भी पत्थर पर निशान छोड़ देती है
शायद वो बचपन से घिस घिस कर पढ़ ले
तो कोई छोटी मोटी नौकरी मिल जाए उसे//
आदरणीय भाई धर्मेन्द्र जी! इस कविता के माध्यम से आज की स्थिति का बड़ा ही सजीव व मार्मिक चित्रण किया है ! कृपया इस हेतु बधाई स्वीकारें| सादर:
इस एक पंक्ति में बहुत गहरे भाव हैं धर्मेन्द्र जी ..
बेचारा सामान्य वर्ग के सामान्य बाप का सामान्य बेटा
रचना मार्मिक और सशक्त .हार्दिक बधाई !!
कैलाश जी, बहुत बहुत धन्यवाद रचना पसंद करने के लिए
आर्थिक विषमताओं और सामान्य वर्ग की व्यथा का बहुत सटीक चित्रण...क्या सामान्य वर्ग आज की व्यवस्था में सम्मान की जिंदगी जी पायेगा ? वोट की राजनीति में फंसे राजनेता इसका ज़वाब नहीं दे सकते. आभार
अश्विनी जी, रचना पसंद करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीय सौरभ जी, रचना को आपका प्यार मिला, लिखना सफल हुआ। बहुत बहुत धन्यवाद
भाई धर्मेन्द्रजी,
एक सामान्य वर्ग के परिवार की आशा को बनते-बिखरते सुनना, उस परिवार की संभावना को तिल-तिल समझौते करते पढ़ना अंदर तक झकझोर गया है. बेचारा सामान्य वर्ग के सामान्य बाप का सामान्य बेटा ..!!
आपकी इस रचना ने स्तब्ध कर दिया है. विशेष कर आखिरी कुछ पंक्तियों ने.
अंत्योदय या उत्थान की बातें तो बहुत-बहुत की जा रही हैं. सामान्य वर्ग को धता बता कर कुचलों और दलितों के सम्मान की चर्चा करना प्रयास से बढ़ कर फैशन-सा हो गया है. अन्यथा वास्तविकता कुछ और होती, विकास भी होता और स्थिति भी बदलती. लेकिन.. लेकिन.. लेकिन.. परिणाम जो सामने है वह यही है.
सादर शुभेच्छा.. .
क्या बात कही है सर आपने ...एक सामान्य आदमी के दर्द को निचोड़ क़र रख दिया है आपने. लाजवाब रचना |
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