For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कविता : सामान्य वर्ग के सामान्य बाप का सामान्य बेटा

मैं हूँ सामान्य वर्ग का एक सामान्य अधेड़
न, न, अभी उम्र पचास की नहीं हुई
केवल पैंतीस की ही है
मगर अधेड़ जैसा लगने लगा हूँ

मेरी गलती यही है
कि मैं विलक्षण प्रतिभा का स्वामी नहीं हूँ
न ही किसी पुराने जमींदार की औलाद हूँ
एक सामान्य से किसान का बेटा हूँ मैं

बचपन में न मेरे बापू ने मेरी पढ़ाई पर ध्यान दिया
न मैंने
नौंवी कक्षा में मुझे समझ में आया
कि इस दुनिया में मेरे लिए कहीं आशा बाकी है
तो वह पढ़ाई में ही है
तब मैंने पढ़ना शुरू किया
मगर बहुत मेहनत करने के बाद भी
हाई स्कूल में सेकेंड डिवीजन पास हुआ

फिर मैंने और मेहनत की
इंटर, बीए, एमए भी पास किया
मगर सब सेकेंड डिवीजन

फिर मैंने विभिन्न नौकरियों के लिए
इम्तेहान देने शुरू किए
मगर मैं सामान्य वर्ग का हूँ
हाँ एक बार आईएएस का प्री जरूर क्वालीफाई किया था मैंने
तब मेरी माँ ने मिठाई बाँटी थी
उसकी आँखों में आशा की एक किरण जागी थी

तीस साल का होते ही
सारे इम्तेहानों के लिए बूढ़ा हो गया मैं
सामान्य वर्ग का हूँ ना
वरना पाँच साल तो और मिल ही जाते

फिर मैंने शहर में कोचिंग पढ़ाना शुरू किया
मगर वहाँ अध्यापक कम
और मैनेजर साहब का घरेलू नौकर ज्यादा था
और तनख़्वाह में तो खाना भी मुश्किल से खा पाता था

मैं घर चला आया
बगल के गाँव की अनपढ़ रधिया से बापू ने ब्याह दिया
और मैंने शुरू किया गाँव के बाजार में
चाट बेचना

रधिया पानीपूरी बड़ा अच्छा बनाती है
दिन भर में सारी बिक जाती है
और हम लोगों को पेट भर खाना मिल जाता है
एक बेटा हुआ मेरे
उसको मैंने अभी से एबीसीडी पढ़ाना शुरू कर दिया है
वो कहते हैं ना
घिसते रहने से रस्सी भी पत्थर पर निशान छोड़ देती है
शायद वो बचपन से घिस घिस कर पढ़ ले
तो कोई छोटी मोटी नौकरी मिल जाए उसे
बेचारा सामान्य वर्ग के सामान्य बाप का सामान्य बेटा

Views: 817

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 2, 2011 at 8:13pm

अम्बरीष जी और अरुण जी, आपने इस रचना को अपना आशीर्वाद दिया इसके लिए आभारी हूँ

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 2, 2011 at 7:17pm

//वो कहते हैं ना
घिसते रहने से रस्सी भी पत्थर पर निशान छोड़ देती है
शायद वो बचपन से घिस घिस कर पढ़ ले
तो कोई छोटी मोटी नौकरी मिल जाए उसे//

आदरणीय भाई धर्मेन्द्र जी! इस कविता के माध्यम से आज की स्थिति का बड़ा ही सजीव व मार्मिक चित्रण किया है ! कृपया इस हेतु बधाई स्वीकारें| सादर:

Comment by Abhinav Arun on October 2, 2011 at 1:26pm

इस एक पंक्ति में बहुत गहरे भाव हैं धर्मेन्द्र जी ..

बेचारा सामान्य वर्ग के सामान्य बाप का सामान्य बेटा

रचना मार्मिक और सशक्त .हार्दिक बधाई !!

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 24, 2011 at 12:29am

कैलाश जी, बहुत बहुत धन्यवाद रचना पसंद करने के लिए

Comment by Kailash C Sharma on September 23, 2011 at 8:45pm

आर्थिक विषमताओं और सामान्य वर्ग की व्यथा का बहुत सटीक चित्रण...क्या सामान्य वर्ग आज की व्यवस्था में सम्मान की जिंदगी जी पायेगा ? वोट की राजनीति में फंसे राजनेता इसका ज़वाब नहीं दे सकते. आभार

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 23, 2011 at 7:14pm

 अश्विनी जी, रचना पसंद करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद  

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 23, 2011 at 7:14pm

आदरणीय सौरभ जी, रचना को आपका प्यार मिला, लिखना सफल हुआ। बहुत बहुत धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 23, 2011 at 1:50pm

भाई धर्मेन्द्रजी,

एक सामान्य वर्ग के परिवार की आशा को बनते-बिखरते सुनना,  उस परिवार की संभावना को तिल-तिल समझौते करते पढ़ना अंदर तक झकझोर गया है. बेचारा सामान्य वर्ग के सामान्य बाप का सामान्य बेटा ..!!

आपकी इस रचना ने स्तब्ध कर दिया है. विशेष कर आखिरी कुछ पंक्तियों ने.

अंत्योदय या उत्थान की बातें तो बहुत-बहुत की जा रही हैं. सामान्य वर्ग को धता बता कर कुचलों और दलितों के सम्मान की चर्चा करना प्रयास से बढ़ कर फैशन-सा हो गया है. अन्यथा वास्तविकता कुछ और होती, विकास भी होता और स्थिति भी बदलती. लेकिन.. लेकिन.. लेकिन..  परिणाम जो सामने है वह यही है.

सादर शुभेच्छा.. .

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 23, 2011 at 1:14pm
संजय जी और बृज भूषण जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Comment by Brij bhushan choubey on September 23, 2011 at 11:11am

क्या बात कही है सर आपने ...एक सामान्य आदमी के दर्द को निचोड़  क़र रख दिया है आपने. लाजवाब रचना |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"रिश्तों की महत्ता और उनकी मुलामियत पर सुन्दर दोहे प्रस्तुत हुए हैं, आदरणीय सुशील सरना…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक - गुण
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, बहुत खूब, बहुत खूब ! सार्थक दोहे हुए हैं, जिनका शाब्दिक विन्यास दोहों के…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय सुशील सरना जी, प्रस्तुति पर आने और मेरा उत्साहवर्द्धन करने के लिए आपका आभारी…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय भाई रामबली गुप्ता जी, आपसे दूरभाष के माध्यम से हुई बातचीत से मन बहुत प्रसन्न हुआ था।…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय समर साहेब,  इन कुछेक वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है। प्रत्येक शरीर की अपनी सीमाएँ होती…"
11 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
13 hours ago
Samar kabeer commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"भाई रामबली गुप्ता जी आदाब, बहुत अच्छे कुण्डलिया छंद लिखे आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।"
18 hours ago
AMAN SINHA posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . विविध

दोहा पंचक. . . विविधदेख उजाला भोर का, डर कर भागी रात । कहीं उजागर रात की, हो ना जाए बात ।।गुलदानों…See More
yesterday
रामबली गुप्ता posted a blog post

कुंडलिया छंद

सामाजिक संदर्भ हों, कुछ हों लोकाचार। लेखन को इनके बिना, मिले नहीं आधार।। मिले नहीं आधार, सत्य के…See More
Tuesday
Yatharth Vishnu updated their profile
Monday
Sushil Sarna commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"वाह आदरणीय जी बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल बनी है ।दिल से मुबारकबाद कबूल फरमाएं सर ।"
Nov 8

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service