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good 1..nice lines
किसकी खातिर रोता तू
कौन यहाँ पर किसका है-
ये और ऐसे ही हर शेर में छिपा है एक दर्शन एक सशक्त सोच !! बहुत बढ़िया ग़ज़ल विवेक जी हार्दिक बधाई !!
- अम्बरीश सर- आपको मेरा यह प्रयास रूचा. हार्दिक आभार. :)
- सौरभ सर- आपके विषय में सबसे अच्छी बात जो मुझे लगती है, वह है- आपकी बेबाक टिप्पणियाँ, जो 'गुलज़ार साहब' की नज्मों की माफ़िक गहरे भाव समेटे हुए होती हैं. इस तुच्छ प्रयास पर अपनी टिप्पणी देकर मान तो आपने, मुझे दिया है. अब यहाँ ही देखिये. आपने शुरू किया 'मित्र' कहकर और अंत में 'भाई' बना लिया. आपका तहेदिल से शुक्रिया.
- गणेश भाई- सही मायनों में देखा जाए तो तकनीकी तौर पर ये मेरा पहला प्रयास है. सही है या नहीं, इसके लिए आप गुणीजनों के मार्गदर्शन की आवश्यकता है. उम्मीद है, योगराज सर, तिलकराज सर और वीनस जी की इक नज़र पड़ेगी. फिलहाल, कहन पसन्द करने के लिए दिल से आभार. :)
विवेक भाई, छोटी बहर पर ग़ज़ल कहना, आसान नहीं होता, आप ने बहर निभाने का भरसक प्रयास किया है, कही कही मुझे लगा कि पड़ोस से दो लाम को जोड़कर गाफ़ बनाया गया है जो तकनिकी रूप से सही प्रतीत नहीं हो रहा है | वीनस से इस पर थोड़ा चर्चा चाहूँगा |
कहन बहुत ही मजबूत है, बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर |
प्रिय मित्र विवेकजी, आपको इस ग़ज़ल के लिये हृदय से बधाई.
उत्साह, लगाव और उम्मीद से आपकी पूरी ग़ज़ल को एक साँस में शे’र दर शे’र पढ़ गया. बहुत दिनों बाद ’रोल-रिवर्सल’ हो रहा था न ! आजतक आप मेरे कुछ कहे पर मुझे मान देते रहे हैं. आज आपने कुछ कहा है और मैं अपनी प्रतिक्रियाएँ दे रहा हूँ. किन्तु, दिल से कहूँ, विवेकभाई, इस नायाब प्रयास से आपने मुझे ही मान दिया है. गर्व हुआ है आपकी इस कहन पर.
इस बह्र पर कुछ कहने के लिये हृदय से बधाई. मैं आपके स्वर में यदि बोलूँ तो, --
कह रातों की स्याह कही
दिल कुछ हल्का होता है -
फिर से ढेरों बधाइयाँ, विवेकभाई.
//किसकी खातिर रोता तू
कौन यहाँ पर किसका है-//
बहुत खूब भाई विवेक जी ! आ की मात्रा को काफिया मानकर अच्छा प्रयास किया है आपने! कृपया इस हेतु बधाई स्वीकार करें !
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