For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नवगीत: उत्सव का मौसम -- संजीव 'सलिल'

नवगीत: उत्सव का मौसम -- संजीव 'सलिल'

 


*
उत्सव का
मौसम आया
मन बन्दनवार बनो...
*
सूना पनघट और न सिसके.
चौपालों की ईंट न खिसके..
खलिहानों-अमराई की सुध
ले, बखरी की नींव न भिसके..
हवा विषैली
राजनीति की,
बनकर पाल तनो...
*
पछुआ को रोके पुरवाई.
ब्रेड-बटर तज दूध-मलाई
खिला किसन को हँसे जसोदा-
आल्हा-कजरी पड़े सुनाई..
कंस बिराजे
फिर सत्ता पर,
बन घनश्याम धुनो...
*
नेह नर्मदा सा अविकल बह.
गगनविहारी बन न, धरा गह..
खुद में ही खुद मत सिमटा रह-
पीर धीर धर, औरों की कह..
दीप ढालने
खातिर माटी के
सँग 'सलिल' सनो.
*****
Acharya Sanjiv Salil

Views: 524

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 4, 2011 at 11:02pm

बहत खूब आचार्यजी ! आपकी प्रतिक्रिया अपन के प्रति हार्दिक शुभकामना है !

अपनी कहन और अपने कथ्य से यह तो वस्तुतः मूल रचना का ही भाग सदृश है. आभार.

Comment by siyasachdev on October 4, 2011 at 10:17pm

सूना पनघट और न सिसके.
चौपालों की ईंट न खिसके..
खलिहानों-अमराई की सुध 
ले, बखरी की नींव न भिसके..bahut hi khoobsurat panktiya ...naman aapki is rachna ko behed umda wah

Comment by sanjiv verma 'salil' on October 4, 2011 at 10:04pm

आपका आभार शत-शत.

बागी नव सौरभ बिखराये.
कली भ्रमर को सबक सिखाये.
मनमोहन अब छले न हमको-
जन-आस्था राधा हो पाये.
ढाई आखर का चरखा ले
चादर नवल बुनो.....


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 4, 2011 at 2:22pm

सिली हुई माटी के गंध से मुग्ध मन को उत्सव-उत्सव करता आपका यह नवगीत, आचार्यजी, बहा ले गया है.

यह सही है कि जो कुछ बीत गया है वह दुबारा नहीं आ सकता लेकिन कवि की अपेक्षाएँ अपनी अपेक्षाएँ हैं. प्रस्तुत पंक्तियाँ इसी का परिचायक हैं -

//सूना पनघट और न सिसके.

चौपालों की ईंट न खिसके..

खलिहानों-अमराई की सुध

ले, बखरी की नींव न भिसके..//

यहाँ ’भिसकना’ शब्द तो जैसे मोह गया. अति सुन्दर.

 

//पछुआ को रोके पुरवाई.

ब्रेड-बटर तज दूध-मलाई

खिला किसन को हँसे जसोदा-

आल्हा-कजरी पड़े सुनाई..//

इस पछुआ को रोकने में पुरवाई का परिशुद्ध रह पाना ही दिन-ब-दिन कठिन होता जा रहा है. सही कहिये आल्हा की याद ही कितनों को रह गयी है? या, मैहर का मतलब कितने पुरबियों के मन में रह गया है?  इस लिहाज से आपका प्रस्तुत प्रयास आशा की किरण सदृश है.

और, घनश्याम के साथ ’धुनो’ कत्तई नहीं बल्कि ’हनो’. बन घनश्याम हनो.  आचार्यवर, लात के भूत बात से कभी नहीं मानते. ये सचमुच के ’ताड़न के अधिकारी’  हैं.

 

//दीप ढालने

खातिर माटी के

सँग 'सलिल' सनो.//

आपके इस आवाहन पर आपको शत्-शत् नमन.  ..


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 4, 2011 at 9:37am

नेह नर्मदा सा अविकल बह.
गगनविहारी बन न, धरा गह..
खुद में ही खुद मत सिमटा रह-
पीर धीर धर, औरों की कह..
दीप ढालने
खातिर माटी के
सँग 'सलिल' सनो.

बहुत खूब आचार्य जी, गहन कथ्य के संग यह रचना बहुत ही मनोहारी बन पड़ी है, आभार आपका |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
yesterday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदरणीय शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। शीर्षक लिखना भूल गया जिसके लिए…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"समय _____ "बिना हाथ पाँव धोये अन्दर मत आना। पानी साबुन सब रखा है बाहर और फिर नहा…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service