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त्यागपत्र (कहानी)

त्यागपत्र (कहानी)

लेखक - सतीश मापतपुरी

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-------------- अंक - 5 ---------------

... एक दिन सुबह-सुबह प्रबल बाबू ने समाचार पत्र उठाया ही था किउन्हें सांप सूंघ गया... " नकली दवा के कारण सात लोगों की मौत "

खबर ने तो उन्हें झकझोर कर रख दिया. समाचार के विस्तार में लिखा था -- " सरकारी अस्पताल में दवा उपलब्ध न होने के कारण उपभोक्ताओं को नजदीकी दवा-दुकानों से ही दवा खरीदनी पड़ी थी, जो यथार्थ में नकली थी"

प्रबल प्रताप सिंह आवाक रह गए. उन्हें यह समझ में नहीं आ रहा था कि वह स्वास्थ्य मंत्री हैं फिर इसकी जानकारी उनसे पहले अखबारनवीसों को कैसे हो गयी ? उन्हें लगा किसी ने उनके कलेजे को अपनी मुट्ठी में भींच लिया है. गुस्से में वह अध्यक्ष उमाकांत को फोन करने ही जा रहे थे कि उनका सचिव पी.के. माथुर ने उन्हें यह कहते हुए रोक लिया -- ' ये क्या करने जा रहे जा रहें हैं सर... ? ’

प्रबल बाबू ने अर्थपूर्ण निगाहों से माथुर की तरफ देखा. माथुर ने उन्हें समझाते हुए कहा - ' मंत्री- पद का यह ताज काँटों का ताज है सर.... अपने ही आपको बदनाम करने में लग गए हैं ... बाहर वालों से निपटना आसान होता है... अन्दर वालों से बचना भी मुश्किल होता है.. '

प्रबल बाबू को लगा कि माथुर उनका सचिव नहीं, भाई है. बिना सोचे-समझे उठे और माथुर के गले लग गए. मंत्री पी. पी. सिंह ने विभाग को ख़ास हिदायत दे रखी थी कि राज्य के सभी अस्पतालों में दवा का समुचित स्टॉक रखा जाय. मंत्री जी ने प्रभावित क्षेत्र का दौरा किया और जाँच के दौरान तीन डाक्टरों और दो दवा-विक्रताओं को इस घटना के लिए दोषी पाया. उन्होंने तत्काल प्रभाव से दोनों डाक्टरों को निलम्बित कर दिया और दोनों दवा-विक्रताओं के खिलाफ़ एफ़आइआर दर्ज करवा दिया.

(क्रमश:)

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Comment by satish mapatpuri on November 4, 2011 at 10:39pm
हौसला और मनोबल बनाए रखने के लिए धन्यवाद आदरणीय सौरभजी

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 4, 2011 at 3:06pm

सही जा रहे हैं.. रोचकता बनी है.. .

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