For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

त्यागपत्र (कहानी)

त्यागपत्र (कहानी)

लेखक - सतीश मापतपुरी

अंक 7 पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करे

-------------- अंक - 8 --------------

प्रबल प्रताप सिंह अब पूरी तरह बदल चुके थे. उनकी ममता को नैतिकता की वेदी पर अपने बच्चों का भविष्य कुर्बान करना गंवारा नहीं था. जीवन एक चढ़ान का नाम है, जहाँ से इंसान एक बार फिसलता है तो गिरता ही चला जाता है. उत्थान से अवसान रंगीन होता है और यही रंगीनी मंजिल तक पहुँचने से रोकती है. सिंह साहेब को दौलत की तराजू में इंसानियत को तौलना आ चुका था. नकली दवाओं से लोग मरते रहे और प्रबल बाबू मुआवजा की घोषणा के साथ गहरी सहानुभूति व्यक्त करते रहे. कितनी अधखिली कलियाँ असमय कुम्हला गयी पर सिंह साहेब का गुलशन गुलज़ार होता रहा. अब वे जन - प्रतिनिधि नहीं, एक लोकप्रिय सरकार के मंत्री थे. कल तक सदन में सिंह की तरह दहाड़ने वाले सिंह साहेब को पांच सितारा होटल में ऐश करने का सलीका आ चुका था. सिंह ने मखमल का लिहाफ ओढ़ लिया था. दवा के नकली कारोबारियों के जेहन से जैसे ही प्रबल बाबू का खौफ ख़तम हुआ उनकी हिम्मत और बढ़ गयी. शासन का संरक्षण अपराधियों को दुस्साहसी बना देता है.

    अपने पुत्र रंजन प्रताप सिंह को विदेश में पढ़ाने का सिंह साहेब ने दृढ़ निश्चय कर लिया था. उनका यह मानना था कि जब तक रंजन विदेश से ऊँची डिग्री लेकर लौटेगा तब तक सरकारी हलकों में उनका अच्छा दबदबा हो चुका रहेगा. उनकी तमन्ना थी कि एकदिन भारत के क्षितिज पर रंजन नक्षत्र के समान प्रकाशमान हो, पर उनकी तमाम कोशिशों के बाद भी रंजन का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था. उसे यदि जुकाम होता तो डॉक्टरों की लम्बी कतार लग जाती. अपनी शान वो शौकत देखकर प्रबल बाबू को एक अज़ीब आनंद की अनुभूति होती. मनुष्य वर्त्तमान में जीने का आदी होता है और वर्त्तमान इतना स्वार्थी होता है कि भविष्य के बारे में सोचने तक की मोहलत नहीं देता. ........................................... (क्रमश:)

अंक 9 पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करे

Views: 561

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 15, 2011 at 1:22pm

कहानी वाचन में हुआ व्यतिक्रम क्षम्य हो. किन्तु इस प्रवाह में कोई ओट नहीं आ पाया है.

त्यागपत्र कहानी के कैनवास और तदनुरूप कथ्य को कुछ बेहतरीन पंच-लाइनों का मिला सहयोग कहानी की रोचकता में वृद्धि कर रहा है.  यथा,  जीवन एक चढ़ान का नाम है, जहाँ से इंसान एक बार फिसलता है तो गिरता ही चला जाता है.   या,   जीवन एक चढ़ान का नाम है, जहाँ से इंसान एक बार फिसलता है तो गिरता ही चला जाता है.  ........ ...

वाह !!  

बहुत अच्छे, सतीश भाई जी.बहुत अच्छे.. .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
9 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सुन, ससुराल में किसी से दब के रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। अरे भाई, हमने कोई फ्री में सादी थोड़ी की…"
9 hours ago
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
15 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
yesterday
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"वज़न घट रहा है, मज़ा आ रहा है कतर ले मगर पर कतर धीरे धीरे। आ. भाई तिलकराज जी, बेहतरीन गजल हुई है।…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service