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अवतार हेतु आर्त-निवेदन

सभी ओपन बुक्स परिवार को जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ
जन्माष्टमी के पावन पर्व पर आईये हम और आप सब मिलकर सच्चिदानन्द घनआनन्द आनन्द स्वरूपा श्री कृष्ण भगवान को एक बार पुनः इस धरती पर अवतरित हो पापों का नाश करने का आर्त निवेदन करें!

हे देवताओं के स्वामी, सेवकों को सुख देने वाले, शरणागत की रक्षा करने वाले भगवान्! आपकी जय हो! ज्य हो!! हे गो-ब्राह्मणों का हित करनेवाले, असुरों का विनाश करने वाले, समुद्र की कन्या (श्रीलक्ष्मी जी)- के प्रिय स्वामी! आपकी जय हो! हे देवता और पृथ्वी का पालन करने वाले! आपकी लीला अद्वुत है, उसका भेद कोई नहीं जानता। ऐसे जो स्वभाव से ही कृपालु और दीनदयालु हैं, वे ही हमपर कृपा करें। हे अविनाशी, सबके हृदय में निवास करने वाले (अन्तर्यामी), सर्वव्यापक, परम् आनन्दस्वरूप, अज्ञेय, इन्द्रियों से परे, पवित्र चरित्र, माया से रहित मुकुन्द (मोक्षदाता)! आपकी जय हो! जय हो!! (इस लोक और परलोक के सब भोगों से) विरक्त तथा मोह से सर्वथा छूटे हुए (ज्ञानी) मुनिवृन्द भी अत्यन्त अनुरागी (प्रेमी) बनकर जिनका रात-दिन ध्यान करते हैं और जिनके गुणों के समूह का गान करते हैं, उन सच्चिदानन्द की जय हो। जिन्होंने बिना किसी दूसरे संगी अथवा सहायक के अकेले ही (या स्वयं अपने को त्रिगुण रूप-ब्रह्मा, विष्णु, शिवरूप - बनाकर अथवा बिना किसी उपादान-कारण के अर्थात् स्वयं ही सृष्टि का अभिन्ननिमित्तोपान कारण बनकर) तीन प्रकार की सृष्टि उत्पन्न की, वे पापों का नाश करने वाले भगवान् हमारी सुध लें। हम न भक्ति जानते हैं, न पूजा। जो संसार के (जन्म-मृत्यु) भय का नाश करने वाले, मुनियों के मन को आनन्द देने वाले और विपत्तियों के समूह को नष्ट करने वाले हैं, हम सब देवताओं के समूह मन, वचन और कर्म से चतुराई करने की बात छोडकर उन (भगवान्) की शरण (आए) हैं। सरस्वती, वेद, शेषजी और सम्पूर्ण ऋषि कोई भी जिनको नहीं जानते, जिन्हें दीन प्रिय हैं, ऐसा वेद पुकारकर कहते हैं, वे ही श्रीभगवान् हमपर दया करें। हे संसाररूपी समुद्र के (मथने के) लिए मन्दराचल रूप, सब प्रकार से सुन्दर, गुणों के धाम और सुखों की राशिनाथ! आफ चरण कमलों में मुनि, सिद्ध और सारे देवता भयसे अत्यन्त व्याकुल होकर नमस्कार करते हैं।
देवता और पृथ्वी को भयभीत जानकर उनके स्नेहयुक्त वचन सुनकर शोक और सन्देह को हरनेवाली गम्भीर आकाशवाणी हुई- हे मुनि, सिद्ध और देवताओं के स्वामियों। डरो मत। तुम्हारे लिए मैं मनुष्य का रूप् धारण करूँगा और उदार (पवित्र) सूर्यवंश में अंशोंसहित मनुष्य का अवतार लूँगा। - (श्रीरामचरितमानस)

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Comment by alka tiwari on September 3, 2010 at 6:26pm
bahut bhavpurn.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on September 2, 2010 at 6:33pm
बहुत सुन्दर
श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पर्व की शुभकामनाएं|

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 2, 2010 at 10:06am
जय श्री कृष्ण आदरणीय नरेन्द्र भाई, अच्छा आलेख आप ने पोस्ट किया है,
Comment by Pankaj Trivedi on September 2, 2010 at 9:20am
प्रिय नरेन्द्रजी,
आपका मनमोहक आलेख पढ़ा... बढ़ाई | इस काल में अब कृष्ण की ज़रूरत आन पडी है | वह जरुर आयेंगे |

कृपया ध्यान दे...

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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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