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कल रात कहीं कुछ रीत गया.
लम्हे टूटे, मैं बीत गया.

साँसें क्या हैं..? इक व्यर्थ गति,
जब साँसों का संगीत गया.

जीवन सपनों के नाम हुआ,
तज कर मुझको हर मीत गया.

अक्सर जीवन की चौसर पर,
सुख हार गया, दुःख जीत गया.

इक दर्द रहा जो क़ायम है,
'साबिर' बाक़ी सब बीत गया.


[14/04/2007]

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प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 19, 2012 at 12:20pm

//साँसें क्या हैं..? इक व्यर्थ गति,
जब साँसों का संगीत गया. //

वाह वाह वाह डॉ नमन दत्त जी, इस सुन्दर ग़ज़ल हेतु मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 29, 2011 at 2:51pm

इक दर्द रहा जो क़ायम है,
'साबिर' बाक़ी सब बीत गया.

इस बेहतरीन प्रयास पर हार्दिक शुभकामनाएँ


Comment by वीनस केसरी on December 28, 2011 at 4:28pm

ZINDABAD

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