For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अंतिम क्षण (दीपक शर्मा कुल्लुवी)

अंतिम क्षण 

अंतिम क्षण मेरे जीवन के

कितने सुहाने होंगे
कोई न होगा साथ हमारे
हम तन्हा ही होंगे
ऐसा नहीं हम इस दुनियां को 
छोड़ के चल देंगे
बज़ूद हमारा मिट नहीं सकता
यहीं कहीं पे रहेंगे 
राख़ को मेरी बहा नहीं सकते
चिता पे मुझको जला नहीं सकते
सौंप दिया है जिस्म-ओ-जाँ हमने
चाहकर भी दफना नहीं सकते
अपनें हो य बेगाने
सबको ही याद आऊंगा
आप चाहो न चाहो आपके 
दिल में बस जाऊंगा 
दिल में बस जा ----
--------
(इस कविता की सत्यता यह है की मैंने अपनी मौत के बाद अपना मृत शरीर एम्स (ऑल इण्डिया इंस्टिट्यूट ऑफ मैडिकल साइंसिस) को दान दे दिया है I  तो कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में तो रहूँगा ही I जो मेरे अपनों मेरे चाहने वालों को यह एहसास दिलाता रहेगा की मेरा बज़ूद इस जमीं पर है और रहेगा Iदूसरा बरसों पहले मैंने एक कविता लिखी थी 'मेरी राख़ को दुनियां वालो गंगा में न बहाना,प्रदूषित  हो चुकी बहुत और उसे न बढ़ाना ' यह साधना टी0 व़ी0 चैनल के लोकप्रिय प्रोग्राम 'कवियों की चौपाल' में भी प्रसारित हुई थी और 'जर्नलिस्ट टुडे नेटवर्क' पर यह मेरी  पहली कविता छपी थी I  इसपर कई लोगों,आलोचकों  नें उंगली उठाई थी,आपत्ति की थी कि डायलाग तो सारे ही मार लेते हैं कोई करके तो  दिखाए I अब कोई यह नहीं कह सकता की कवि झूठ लिखते हैं I)

दीपक शर्मा कुल्लुवी
27 /12 /2011 .
9350078399  

Views: 429

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Deepak Sharma Kuluvi on December 27, 2011 at 3:39pm

LOON KARAN CHHAJER JI

आपका धन्यवाद 
हम तो हमेशा अगली पंक्ति में ही  रहते हैं कोई टमाटर मरे तो सब्जी बना लेंगे और जूता मारे तो  खर्चा बचा लेंगे 
दीपक शर्मा कुल्लुवी
27 /12 /2011 .
Comment by LOON KARAN CHHAJER on December 27, 2011 at 3:27pm

एक चित्रकार ने बहुत सुन्दर पंटिंग बना कर शहर के मध्य में टांग कर निचे लिखकर कहा की इसमे कोई गलती   हो तो वहां  निशान लगायें . कुछ घंटों बाद उसने जब अपनी पंटिंग देखी तो उसका हुलिया ही बदल चूका था . वह बहुत दुखी हुआ की मेरी  पंटिंग में इतनी  गलतियाँ  है , में एक सही कलाकार नहीं बन सकता .उसने अपनी बात किसी सुधिजन के समक्ष रखी उसने उसको सलाह दी की इस बार आप पंटिंग बनाकर  उसी जगह पर लगाओ परन्तु निचे लिखना की इसमे जहाँ गलती लगे उसमे सुधार अवश्य करें .पंटिंग दो दिन शहर के मध्य तंगी रही परन्तु एक भी व्यक्ति ने कोई  सुधार  नहीं किया था . कलाकार को समझाया गया की दोष किसी भी बात में व  किसी में भी व्यकी में निकला जा सकता है परन्तु किसी में सुधार करना बहुत कठिन है.
दीपक जी आपने   बहुत अच्छा निर्णय लिया है अब देखना यह है की कवि सम्मलेन में आप पर फब्तियां कसने वाले क्या निर्णय लव पते है . क्या वो भी आपका अनुकरण करेंगे.
बहुत अच्छी कविता के लिए धन्यवाद .

Comment by Deepak Sharma Kuluvi on December 27, 2011 at 12:05pm
क्या बेकार लिखता है तू .....
दीपक शर्मा कुल्लुवी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service