सामान उठाते हैं
अब लौट के जाते हैं
दिल मेरा दुखाने को
अहबाब भी आते हैं
ये चाँद-सितारे भी
रातों को रुलाते हैं
जो टूट के मिलते थे
वो रूठ के जाते हैं
मैं उनका निशाना हूँ
वो तीर चलाते हैं
हम अपनी उदासी को
हँस-हँस के छुपाते हैं
की ख़ूब अदाकारी
पर्दा भी गिराते हैं
.......दीपक कुमार
Comment
shukriya Brij bhusan choubey ji !!
हम अपनी उदासी को
हँस-हँस के छुपाते हैं lajvab rachna .
dhanyawaad Raj Lally Ji..!!
khoob hai ji !!
ये चाँद-सितारे भी
रातों को रुलाते हैं
वीनस केशरी bhai, shukrguzaar hoon apka..!!
aadarniya Saraubh Pandey ji, bahut-bahut Dhanyawaad !! koshish karoonga OBO par niyamit aataa rahoon.
जो टूट के मिलते थे
वो रूठ के जाते हैं
वाह दीपक जी
क्या कहने
छोटी बह्र को आपने खूबसूरती से निभाया है
विशेष प्रभाव से आपने कहन को दमदार बना दिया है, दीपकजी. प्रस्तुत पंक्तियों पर विशेष साधुवाद.
ये चाँद-सितारे भी
रातों को रुलाते हैं ..
मैं उनका निशाना हूँ
वो तीर चलाते हैं
प्रविष्टियों से सहयोग बनाए रखें. .. बधाइयाँ.
धन्यवाद अभिनव जी..!!
"मैं उनका निशाना हूँ
वो तीर चलाते हैं" +
"की ख़ूब अदाकारी
पर्दा भी गिराते हैं"
बहुत खूब ! अच्छे शेर कहे हैं हार्दिक बधाई दीपक जी !!
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