सूद पहले फिर असल दो
इक मुहब्बत की ग़ज़ल दो
जो परिन्दे छत पे आयें
उनको दाने और जल दो
शक्ल वैसी ही रहेगी
आईना चाहे बदल दो
धर्मशाला है ये दुनिया
रात काटो और चल दो
ये बदन कल तक नया था
अब पुराना है बदल दो
तुम सवेरे-शाम आओ
मेरे जीवन में खलल दो
......दीपक कुमार
Comment
Raj Lally Sharma ji bahut bahut shukriya !!
Bahut khoob !! Chhoti behar ka kamal !!
aadarniya Shri Saurabh Pandey ji.. aabhaar..!!
deepak kumar ji ko deepak kumar ka.. aadaab !! kubool karein.
...aur jab ho jata hai... to teen dinon tak uski khumari nahin jati. shukriya वीनस केशरी bhai..!!
बहुत खूब .. बधाई इस बेहतर कोशिश पर.
Deepak G. Aap ki Gazal dil ko chhu gayi hai. Bahut khub
धर्मशाला है ये दुनिया
रात काटो और चल दो
ऐसा शेर बार बार नहीं होता, और होता है तो बस हो जाता है ...
उम्दा शेर कहा है दीपक जी
हार्दिक बधाई
नीरज भाई, शशिप्रकाश सैनी जी और आदरणीय योगराज प्रभाकर जी, आप सबों को मेरी ग़ज़ल पसंद आई, जानकार बहुत ख़ुशी हुई, बहुत सुकून भी मिला. इतनी सुन्दर टिप्पणियों के लिए आप सबों का आभारी हूँ. आप सबों को बहुत बहुत धन्यवाद !!
वाह वाह वाह - छोटी बहर में बहुत बुलंद पाये की ग़ज़ल कही है दीपक जी, हार्दिक बधाई.
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