For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बिन तुम्हारे मैं अधूरा

अश्रु गण साथी रहे

मेरे ह्रदय की पीर बनकर !

रात चुभ जाती हमेशा तीर बनकर !

मैं भटकता नीर बनकर !

तुम सुनहरे स्वप्न सी हो

मैं नयन हूँ !

बिन तुम्हारे मैं अधूरा

और मेरे बिन तुम्हारा अर्थ कैसा !

जीत की उम्मीद से प्रारंभ होकर

निज अहम के हार तक का ,

प्रथम चितवन से शुरू हो प्यार तक का ,

प्यार से उद्धार तक का

मार्ग हो तुम !

मै पथिक हूँ !

निहित हैं तुझमे सदा से

कर्म मेरे

भाग्य मेरा,

और सार्थकता तुम्हारी

कौन है मेरे अलावा !

 

मेरे माथे का तिलक हो

कौन कहता धूल हो तुम !

कीच में हो किन्तु पावन फूल हो तुम !

रंग की सुन्दर मरीचिका से परे

तुम गंध हो !

मैं पवन हूँ !

है तेरे सानिध्य से पहचान मेरी ,

और मेरे बिन

तुम्हारा भी कहाँ अस्तित्व होगा !

तुम विभा हो

और मैं  

तेरा अरुण हूँ !

कर्म मैं विश्राम हो तुम !

मैं नही तो कौन तुमको मान देगा

तुम न हो तो

कौन देगा अर्घ्य मुझको !

 

 

......................................अरुन श्री !

 

 

Views: 439

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 25, 2012 at 5:53pm

कर्म मैं विश्राम हो तुम !

मैं नही तो कौन तुमको मान देगा

तुम न हो तो

कौन देगा अर्घ्य मुझको !

सुन्दर रचना अरुण जी , भावों का बढ़िया सम्प्रेषण , बधाई आपको |

Comment by Arun Sri on February 25, 2012 at 10:03am

धन्यवाद आदरणीय !

Comment by satish mapatpuri on February 25, 2012 at 12:04am

रात चुभ जाती हमेशा तीर बनकर !

मैं भटकता नीर बनकर !

तुम सुनहरे स्वप्न सी हो

मैं नयन हूँ !

अरुण जी ........................ वाकई................... खुबसूरत ख्याल ................... खुबसूरत कहन. बधाई
Comment by Arun Sri on February 23, 2012 at 10:03am

राजेश कुमारी मैम , रचना आपके ह्रदय तक पहुँच सकी सार्थक हो गई !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 23, 2012 at 8:35am

और मेरे बिन

तुम्हारा भी कहाँ अस्तित्व होगा !

तुम विभा हो

और मैं  

तेरा अरुण हूँ !वाह अतिसुंदर बहुत प्रभावशाली रचना

Comment by Arun Sri on February 22, 2012 at 1:32pm

सराहना के लिए धन्यवाद आशा मैम !

Comment by asha pandey ojha on February 22, 2012 at 1:18pm

 इसी पूरकता का नाम जिन्दगी है .. हम सब एक दूजे से बने एक दूजे सें गूंथे .. सार्थकता भी तो इसी में है जीवन की .. प्रभावशाली रचना के लिए बधाई अरुन श्री जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service