For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जरूरत सोच बदलने की

हर सोच, हर कल्पना, हर विचार पर हजारों पन्ने लिखे जा चुके है. कुछ लोगों की दुष्ट मानसिकता की बदौलत आज तक भी हम गुलामी की मानसिकता से पूरी तरह नहीं उबर पाए है. समय के साथसाथ गुलामी की परिभाषा भी बदल गई. पहले विदेशियों का कब्जा होने से हम गुलाम थे. उनको खदेड़ा, तो अब यहां धार्मिक, राजनैतिक ताकतों के गुलाम हो गए. जो इनकी सीमाओं से बाहर रहने का साहस दिखाए, वह समाज के अयोग्य नागरिकों में शामिल कर दिया जाता है. बहरहाल बात यह है कि कुछ लोग अपने जीवनकाल में वह मुकाम हासिल करते है, जिनके आचरण को आदर्श मानकर पीढ़ी दर पीढ़ी अपनाया जाता है. हमारी गुलाम मानसिकता में एक नाम का जिक्र हमेशा हो सकता है जयचंद. इसी सोच का परिणाम था कि सोने की चिडिय़ां के नाम से विश्व पटल पर अंकित भारतवर्ष को करीब दो सौ वर्षों तक गुलामी का दंश झेलना पड़ा. लड़ भिडक़र आजादी हासिल की, तो अब वंशवाद की गुलामी करना शान समझने लगे. यह ठीक बात है, जिस समाज का नेतृत्व नहीं होता, वह समाज बिखर जाता है. जब हमारी जीवनचर्या के लिए लोकतांत्रिक प्रक्रिया लागू है. तो फिर वंशवाद की बात समझ से परे है। राजा का बेटा राजा होगा, यह बात समझ में आती है, क्योंकि वह राजतंत्र का हिस्सा है। पर जहां लोकतंत्र की बात की जाती है, वहां नेता का बेटा, नेता क्यों। अगर ऐसा है, तो यही तो गुलामी है. भले ही भौतिक रूप से आजाद है, पर मानसिकता तो गुलामी की है. और जब तक मानसिक गुलामी की जंजीरों को नहीं तोड़ा जाएगा, तब तक हम पूर्ण आजाद नहीं हो सकते है. यह बात समझ में आती है, जब मानसिकता गुलामी वाली हो तो हम किसी भी क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सकते है. क्योंकि हर इंसान अपने आप में कुछ विशेष योग्यता रखता है. पर उसको कुछ करने की आजादी हो तो तब न. बचपन से ही उसके दिलोदिमाग पर धर्म, समाज संबंधित विचार भरते चले जाते है. अपनी युवास्था पर पहुंचतेपहुंचते वह भी अपने पूर्ववर्तियों की भांति काम करता है. नई सोच, नई शुरूआत के लिए जरूरी है हम अपनी मानसिकता को बदले. ऐसा कोई हमको नहीं कहने वाला और न ही हमको कोई ऐसा करने देगा. क्योंकि हम ऐसा करते है तो सामने वाले को दर्द होगा, उसको अधिकारों पर चोट हो सकती है. पर हमको कुछ नया करने के लिए अपने भीतर एक नई सोच विकसित करनी होगी. जब तक यह सोच आजाद नहीं होगी, तब तक कुछ भी नया होने की बात करना बेमानी है. इसलिए जरूरत इस बात की है कि इस सोच को बदल दिया जाए. ताकि हम भी कुछ नया कर सके.

Views: 364

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 5, 2012 at 8:10pm

आपके विचारों से पूर्ण सहमति है आदरणीय हरीश जी| सोच बदले बिना कुछ भी नहीं हो सकता| साभार,

Comment by minu jha on March 5, 2012 at 4:31pm

हरीश जी,बधाई

 नई सोच तभी नई उपलब्धि,सही कहा आपने

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 5, 2012 at 4:14pm

RIGHT APPROCH, HARISH SIR JI.

BADHAI SUNDAR LEKH HETU.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Jul 6
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Jul 6

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Jul 5

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service