सोचा था
तेरी याद के सहारे
जिंदगी बीता लूंगा
अब न तेरी याद आती है
न ही जिंदगी के दिन ही बचे
जो बचे भी उनमें क्या तेरे मेरे
क्या सुबह, क्या शाम
बस एक ही तमन्ना है
जहां भी रहो मुझे याद करना
क्योंकि तुम याद करोगे तो
दुनिया से जाते वक्त गम न होगा
क्योंकि तुम, तुम हो और हम, हम
राहें जुदा हो गई तो क्या
कभी मिलकर चले थे मंजिल की ओर
अब तो सोच कर भी सोचता हूं
क्यों मिले थे हम और क्यों बिछड़े
सोचता हूं
तेरी याद को ही भुला दूं
पर कमबख्त याद है ही ऐसी
भुलाते भुलाते भी रूला ही देती है तेरी याद.
Comment
एक सच्चाई है आपकी रचना | यादें हमारा साथ कहाँ छोडती हैं और उनपर हमारा वश कहाँ !!! बधाई इस सशक्त अभिव्यक्ति हेतु !!
सच है यादें भुलाई नहीं जा सकतीं| बहुत सुन्दर|
सोचा था
तेरी याद के सहारे
जिंदगी बीता लूंगा
अब न तेरी याद आती है
न ही जिंदगी के दिन ही बचे |....वाह वाह वाह सीधे दिल की बात दिल में उतर गई बहुत खूबसूरत पंक्तिय कवी जी |
वाह,,,,,ज़नाब क्या बात है,,,,,,,,बहुत खूब,,,,,,,,,,,बधाई
पर कमबख्त याद है ही ऐसी
भुलाते भुलाते भी रूला ही देती है तेरी याद.BEAUTYFUL...
अब न तेरी याद आती है
न ही जिंदगी के दिन ही बचे
जो बचे भी उनमें क्या तेरे मेरे
क्या सुबह, क्या शाम....KYA BAT HAI.....HARISH BHATTA..
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