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मेरा नीड़ जिस पेड़ पर है
लोग उसे कल्पद्रुम कहते हैं
जनविश्रुत है-
वह सब कुछ देता है
जो उससे मांगा जाता है
क्या यह सच है?
मेरे देखने में तो नहीं।
क्यों?
क्योंकि
वह कल्पद्रुम खामोश सा
खड़ा रहता है
अहर्निश!!!
उसके पत्ते गिर रहे हैं
सड़-सड़ कर
टहनियां सूख रही हैं
जड़ें धीरे-धीरे
ऊपर आ रहीं हैं
वह प्यासा मर रहा है
एक घूंट पानी बिन
कार्बन डाई ऑक्साइड के बजाय
ऑक्सीजन ले रहा है
अब वह खामोश हो
केवल
आगंतुकों का चेहरा देखता है
समाधिस्थ योगी सा
टुकुर!
टुकुर!!
टुकुर!!!
अब पंक्षी
उस पर बीट नहीं करते
क्योंकि
अब उस पर
फूल ही नहीं लगते
पहले वह परेशान होता था
झल्लाता था
जब हम कलरव करते थे
अपनी झल्लाहट प्रकट करता था
जोर से हिलकर
मगर अब जड़वत है
कभी-कभी कांप जाती हैं
उसकी सूखी टहनियां
हवा के वेग से
इसीलिए अब मैं भी
इसे छोड़कर उड़ने वाला हूं
क्योंकि मेरे अंडे
महफूज नहीं हैं
अच्छा!
अलविदा कल्पद्रुम
अलविदा!

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Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 19, 2012 at 9:04pm
गुरू हमेशा महान ही होता है।वह लघु को भी गुरु कर देता है।
आपका पुनश्च आभार!

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 15, 2012 at 1:40pm

जय हो.. .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 15, 2012 at 1:36pm

एकदम सही कहा आपने. इस रचना के आयाम सटीक प्रश्न करते हैं. किन्तु, उन्हें पाठकों की दशा और समझ पर ही छोड़ा जाना उचित होता. 

वस्तुतः, रचना-पाठ के बाद पाठकों की प्रतिक्रियाएँ भी धीरे-धीरे रूढ़िगत होती जा रही है, ’अच्छा’ या ’बहुत खूब’ या ’लाजवाब’ के आगे कुछ और कहना कई बार पाठकों के लिये भी ’आ बैल मुझे मार’ का पर्याय और कारण प्रतीत होने लगता है.  परन्तु, मेरा मानना है कि जो कुछ आपने अपनी रचना के संबन्ध में कहा है, वो सारा कुछ पाठकों की ओर से आना चाहिये. टिप्पणियाँ रचनाओं पर मात्र ’वाहवाही’ नहीं, समीचीन, सार्थक और सटीक प्रतिक्रिया की तरह आये. तभी रचनाएँ भाव-संप्रेषण का अर्थ और बिम्ब सुदृढ़ करती दीख पायेंगीं.  

रचना के लिये पुनश्च बधाई.

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 15, 2012 at 1:18pm
गुरूदेव सौरभ जी खेद है कि मेरी गलती से आपका कमेंट डिलीट हो गया।क्षमाप्रार्थी हूं।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 15, 2012 at 12:39pm
आभार कुशवाहा जी!
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 15, 2012 at 12:08pm

सुन्दर भाव एवं प्रस्तुति. बधाई.

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