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(१)
सुख औ दु:ख
प्रकृत या प्रारब्ध
मधु औ डंक।
(२)
आग औ धूम
प्रकाश संग तम
शराब गम।
(३)
आशा निराशा
कुछ पाने की आशा
पर हताशा।
(४)
मन है प्यासा
उत्कट अभिलाषा
जीत की आशा।
(५)
हार में जीत
हर जन से प्रीत
रहो निर्भीत।
(६)
पाने की चाह
उमंग औ उत्साह
सरल राह।
(७)
एकाग्र दृष्टि
सफलता की वृष्टि
मन की तुष्टि।
(८)
धैर्य औ ध्यान
उत्साह का उफान
लक्ष्य संधान।
(९)
एक अंजान
कौन है भगवान
जो अंतर्ध्यान?
(१०)
क्या है जीवन?
जीवन का उद्देश्य?
या निरुद्देश्य
(११)
जन्म मरण?
अमरत्व वरण?
भव तरण?
(१२)
अब भी रहस्य
जीवन का सत्य
क्या है उद्देश्य?
(१३)
संसार सार
प्रकाश अंधकार
या निस्सार?

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Comment

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Comment by MAHIMA SHREE on March 16, 2012 at 1:23pm
अब भी रहस्य
जीवन का सत्य
क्या है उद्देश्य?
भाई जी सही कहा आपने हम दोनो की रचनाओ का भाव भूमि एक ही है.....
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 15, 2012 at 12:44pm
आभार डॉ.प्राची जी!
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 15, 2012 at 12:43pm
आभार कुशवाहा जी
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 15, 2012 at 12:17pm
मैं  तो आनंद ही ले  रहा हूँ. बधाई. 
बहुत खूब .
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 15, 2012 at 11:04am
आभार वाहिद जी!
Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 15, 2012 at 10:50am

प्रेरणास्पद हाइकू त्रिपाठी जी| बहुत सुन्दर..

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