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खिला धूप चेहरा मदमाती वो आंखें।
सुर्ख से अधर, पर शर्माती वो आंखें॥

.
देखूं जो नजर भर चुराती वो आंखें।
हटे जो नजर तो बल खाती वो आंखें॥

.
लगे दर्द दिल में छुपाती वो आंखें।
छुपे राजे दिल को बताती वो आंखे॥

.
क्यों ही न जाने दिल जलाती वो आंखें।
बहा अश्क फिर से बुझाती वो आंखें॥

.
सब्र के अब्र को छेद जाती वो आंखें।
अब्र से आब ले बरसाती वो आंखें॥

.
सुनो दोस्त मेरे मदमाती वो आंखें।
जिन्दगी की गजल गुनगुनाती वो आंखें॥

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Comment

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Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 18, 2012 at 10:06pm
आभार आदरणीय जवाहर लाल जी।शब्दों पर अधिकार नहीं आप सब गुरूजनों का आशीर्वाद है।
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on March 18, 2012 at 9:17pm

सुनो दोस्त मेरे मदमाती वो आंखें।
जिन्दगी की गजल गुनगुनाती वो आंखें॥

बहुत  ही  सुन्दर संकलन है आपका शब्दों पर क्या नियंत्रण है!

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 17, 2012 at 9:09pm
डॉ.प्राची जी! आपने मेरी रचना में एक और पंक्ति जोड़ कर रचना को गौरवान्वित किया है।आभार आदरणीया!
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 17, 2012 at 9:06pm
आभार आदरणीय आशीष जी!
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 17, 2012 at 9:05pm
आभार आदरणीय कुशवाहा जी!
Comment by आशीष यादव on March 17, 2012 at 10:18am

लगे दर्द दिल में छुपाती वो आंखें।
छुपे राजे दिल को बताती वो आंखे॥

.
क्यों ही न जाने दिल जलाती वो आंखें।
बहा अश्क फिर से बुझाती वो आंखें॥

bahut khub. sundar rachna. badhai.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 17, 2012 at 10:11am

सुनो दोस्त मेरे मदमाती वो आंखें।
जिन्दगी की गजल गुनगुनाती वो आंखें॥

jindagi ek gajal hi to hai. badhai. 

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 16, 2012 at 10:32pm
आभार अश्विनी सर!
Comment by अश्विनी कुमार on March 16, 2012 at 10:19pm

विंदेश्वरी जी ,,तवस्सुर को तवस्सुफ की हद तक पहुंचा दिया आपने ..........अति सुंदर कृति ॥आभार ..........जय भारत

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