For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रात्रि का अंतिम प्रहर घूम रहा तनहा कहाँ

थी ये वो जगह आना न चाहे कोई यहाँ

हर तरफ छाया मौत का अजीब सा मंजर हुआ

घनघोर तम देख साँसे थमी हर तरफ था फैला धुआं

नजर पड़ी देखा पड़ा मासूम शिशु शव था

हुआ जो अब पराया वो अपना कब था

कौंधती बिजलियाँ सावन सी थी लगी झड़ी

कौन है किसका लाल है देख लूं दिल की धड़कन बढ़ी

देखा तनहा उसे सर झुकाए समझ गया कि उसकी दुनिया लुटी

जल रही थी चिताएं आस पास ले रही थी वो सिसकियाँ घुटी घुटी

देती कफ़न क्या कैसे देती आग थे तार तार वस्त्र और उसके भाग्य

आस थी मिले कफ़न दूँ चिता लाल को दे न सकी हाय रे दुर्भाग्य

देख दशा उस लाल की प्रक्रति भी जार जार रोई

हो न ऐसा कभी ऐ खुदा चिता/कफ़न को भी तरसे कोई

Views: 964

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 18, 2012 at 5:28pm

स्नेही राकेश  जी. स्थिति स्पष्ट कर दी है. आगे ध्यान रखूंगा. आभार. 

Comment by RAJEEV KUMAR JHA on March 18, 2012 at 2:39pm

आदरणीय प्रदीप जी,बहुत सुन्दर कविता लिखी है.

देखा तनहा उसे सर झुकाए समझ गया कि उसकी दुनिया लुटी

जल रही थी चिताएं आस पास ले रही थी वो सिसकियाँ घुटी घुटी

बहुत ही भावपूर्ण पंक्तियाँ  हैं.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 18, 2012 at 2:38pm

 आदरणीय अश्वनी जी , वाहिद जी, प्रवीन  जी एवं समस्त ओ.बी.ओ. परिवार 

 सादर अभिवादन. 
महोदय , 
काव्य रचना- बेबसी
प्रथम बात मैं लेखक नहीं , ब्लागर हूँ. 
तकनीकि पक्ष की बिलकुल जानकारी नहीं. 
ओ.बी.ओ. में सीखने आया हूँ. 
आप प्रबुद्ध जनों से सदेव मेरा निवेदन रहा है आज भी है बगैर मेरी उम्र का ख्याल किये समीक्षा कर रचना को सुधारने की कृपा करें . ताकि  अच्छी रचना पटल पर रहे. मेरे इस संसार में न रहने पर भी उसे याद किया जाये. ये तभी संभव होगा जब आप लोग मेरे ऊपर ध्यान देंगे. 
बेबसी का आलम  ये है की लिखने के बाद भी सोचता रहा क्या मैं अपनी बात कह पाया या नहीं. शायद नहीं. 
शमशान वो जगह है जहाँ कोई जाना नहीं चाहता. घनघोर अँधेरी रात, मूसलाधार बारिश. शमशान में जलती चिताएं. मैं वहीँ पर हूँ. एक मासूम का शव है पर उसकी माँ के पास कफ़न चिता की व्यवस्था नहीं है. 
कृपया इस कविता को तराशने का कष्ट करें ताकि  ये पूर्ण हो सके. 
Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 18, 2012 at 12:13pm

आदरणीय प्रदीप जी,

दुर्दांत समाज में मानव की विवशता का मार्मिक चित्रण| राकेश जी और अश्विनी जी से मैं भी सहमत हूँ कुछ सन्दर्भ समझ नहीं आये| आभार,

Comment by अश्विनी कुमार on March 18, 2012 at 9:50am

स्नेही प्रदीप जी ,,सादर अभिवादन ,,अति भावपूर्ण काव्य ,जहां तक मेरा मानना है की काव्य हृदय के उन्मुकत उद्गार हैं जिसे किसी नियम में बांधना निर्मल भावनाओं के साथ अन्याय होगा ,,कविताओं पर कई प्रयोग हुए और मेरे समझ में शायद उसके सशक्त झंडाबरदार अज्ञेय जी थे जिन्होने कविता पर अनेकानेक प्रयोग किए उनके कई प्रयोग सफल भी हुए ||कहने का सार यही है कि अगर हृदय के उद्गार को समझने लायक भाषा में व्यक्त किया जाये और पाठक  उसका मर्म समझ सके तो काव्य सार्थक है ||......जय भारत

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 18, 2012 at 8:46am

माननीय प्रदीप जी, सादर नमस्कार. बहुत ही सुंदर कविता है. बहुत अच्छा प्रयत्न. कहीं कहीं सन्दर्भ मई नही समझ पाया.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"यह लघु कविता नहींहै। हाँ, क्षणिका हो सकती थी, जो नहीं हो पाई !"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

भादों की बारिश

भादों की बारिश(लघु कविता)***************लाँघ कर पर्वतमालाएं पार करसागर की सर्पीली लहरेंमैदानों में…See More
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।। छोटी-छोटी बात पर, होने लगे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय चेतन प्रकाश भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक …"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सुशील भाई  गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service