हमको यहाँ लूटा गया,
वादा तेरा झूठा गया.
वो कब मनाने आये थे?
हम से नहीं, रूठा गया.
चोटें तो दिल पर ही लगी,
खूं आँख से चूता गया.
जो चुप रहे, ढक आँख ले,
राजा ऐसा, ढूंढा गया.
पैसों से या फिर डंडों से,
सर जो उठा, सूता गया.
दारु बँटा करती यहाँ!
यह वोट भी, ठूँठा गया. (ठूँठ = NULL/VOID)
संन्यास ले, बैठा कहीं,
घर जाने का, बूता गया.
नव वर्ष 'मंगल' कैसे हो?
दिन आज भी रूखा गया.
खोजा "खुदा" वो ता-उमर!
आगे से इक भूखा गया.
पीछे रहा है 'बस्तिवी'!
सर पर नहीं कूदा गया.
Comment
आदरणीय शाही जी, धन्यवाद.
श्री वीनस भाई! सादर धन्यवाद.
खा (२) मो(२) श (१) र(१) हे(२) / बं (२) द(१) आँ(२) ख(१) कर (२)
वो (२) भी (२) सं (२) या (२) / सी (२) हो (२) ग (१)या (२)
खो2जा2 "खु1दा2" ता2-उ1मर2! ... इसे आपने खुद ही पढ़ लिया है.
सा (२) म (१) ने (२) से (१) ए (२) / क (१) भू (२) खा (२) ग (१) या (२)
मिसरों की उपरोक्त तरीके से तक्तीह हुई है. धन्यवाद.
श्री सौरभ जी, सादर, मैंने मात्राएँ निम्नवत गिनी है, आप बताये कहाँ कहाँ गलती हुयी है, आपसे बहुत म्हणत करवा रहा हूँ, क्षमा चाहूँगा:
खा2मो2श1 रहे2, बंद2 आँ2ख1 कर2,
रा2जा2 ऐ1सा2, ढूं2ढा2 गया.
वो2 भी2 सं1या2सी2 हो2 ग1या2,
घर2 जा2ने1 का2 बू2ता2 गया.
खो2जा2 "खु1दा2" ता2-उ1मर2!-------यहाँ गलती है, मानता हूँ.
सा2मने2 से1 एक2 भू2खा2 गया.
खामोश रहे, बंद आँख कर,
राजा ऐसा, ढूंढा गया.
पैसे से या फिर डंडे से,
सर जो उठा, सूता गया.
नव वर्ष 'मंगल' कैसे हो?
दिन आज भी रूखा गया.
वाह वाह
आपके भाव पक्षीय प्रयोगों ने चमत्कृत कर दिया
विशेष बधाई
खामोश रहे, बंद आँख कर,
राजा ऐसा, ढूंढा गया.
वो भी संयासी हो गया,
घर जाने का बूता गया.
खोजा "खुदा" ता-उमर!
सामने से एक भूखा गया.
भाई राकेश जी, उपरोक्त अश’आर को प्रयुक्त बह्र के वज़्न में बाँधिये. या, लिखिये, कैसे मात्राएँ गिनी हैं आपने. तो कुछ स्पष्ट हो सके.
पैसे से या फिर डंडे से,
सर जो उठा, सूता गया.
उपरोक्त शे’र में ’पैसे से’ का प्रयोग उचित नहीं है. वस्तुतः, एक ही वर्ग के दो अक्षरों को साथ लेने से स्वर-भंग की स्थिति बनती है. ऐसा प्रयोग जबतक अपरिहार्य न हो जाय उचित नहीं माना जाता.
’ना’ का प्रयोग ग़ज़लों में नहीं होता. यह सर्वमान्य है.
श्री सौरभ जी , सादर! बह्र में वज्न वाली बात अभी भी मेरी समझ में नहीं आई, मै तो बस मात्राएँ गिनता हूँ, कृपया इस बात को साफ़ करें की 'ना' क्यों नहीं लेना चाहिए, एवं कोई लिंक हो तो पढ़ने हेतु दें, आभार.
मुझे मालूम है कि मिसरे का वज़्न २२१२ २२१२ है. यह आपको भी मालूम है यह अच्छा है. अब आप अपने अश’आर के मिसरों को वज़्न पर बाँधिये जिसे उदाहरण सहित आप देख चुके हैं.
आगे,
हम ही से ना, रूठा गया. .. यहाँ ’ना’ मत लें.
दारु बँटा, टी वी मिला ... दारू बँटा करती है न ? कृपया देख लीजियेगा.
कहता चलूँ, राकेशजी, मक्ता बहुत ही खूबसूरत बन पड़ा है.
श्रीमान शैलेन्द्र जी, आपका हार्दिक धन्यवाद एवं स्वागत है. आपने जो मुझे इज्जत बख्शी है, उसके लिए तहे दिल से शुक्रिया.
श्रद्धेय श्री योगराज जी ने मुझे बताया की "वादा सभी" में एकवचन एवं बहुवचन की कुछ कमी है. मै उनका ह्रदय से आभार्री हूँ, और उसे "वादा तेरा" करना चाहूँगा. धन्यवाद.
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