क्यों हम लौट चलें !
कि चाहत देख कर हमारी ज़माना जलता है ,
कि घर बहार हर दम कोई फ़साना पलता है .
निगाहें घूम जाती हैं, तेरे साथ आने से
दीवारें सुन ही लेती हैं हमारे गुनगुनाने से
क्यों हम लौट चलें !
ये अंकुर है जो फूटा है, नहीं शुरुआत ये जाना
ये बढ़ते कदम तो बस एक परवाज़ है जाना .
ये दीपक है जो लड़ता है , तूफां में अँधेरे में,
ये जुगनू चमकेगा फिर से, अंधियारे घनेरे में
क्यों हम लौट चलें !
ये मंजिल बन चुकी है एक सफ़र भारी समंदर का ,
कोई क्या देख सकता है गुबारा मेरे अंदर का .
मत पूछ मेरी दीवानगी का हश्र क्या होगा
तू दिल से पूछ अपने, फिर तुझे खुद से बयां होगा
क्यों हम लौट चलें !
क्यों हम लौट चलें ! !
रचयिता : डा अजय कुमार शर्मा ( गीतकार डा अजय )
Comment
ये मंजिल बन चुकी है एक सफ़र भारी समंदर का ,
कोई क्या देख सकता है गुबारा मेरे अंदर का .
bahut sundar bhaavabhivyakti.badhaai.
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