For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीतों से दिल की बातें, कैसे तुम्हें सुनाऊं ..

गीतों से दिल की बातें, कैसे तुम्हें सुनाऊं  .

बेबस नयन की बोली, कैसे तुम्हें दिखाऊ.

दिल कुमुदनी सा देखो, प्रियतम मेरी तुम्हारा ,

चन्द्र चन्द्रिका से दिल की, कैसे इसे खिलाऊं .

दर्पण से दिल में जो भी ,संजोये तुमनें सपने ,

दर्पण में अक्स दिल का , कैसे तुम्हें दिखाऊ.

काज़ल ने है बचाया, नज़र से ज़माने की ,

वो ख्वाब तुम्हारे हैं, ज़माने से मैं छिपाऊं .

ऋतु बसंत पतझड़ पर, छा गयी गुलिस्ताँ में,

मैं खिल उठा सुमन सा , जग को ज़रा बताऊँ .

बदरी बन के छाए , धरती की प्यास पर तुम ,

धरा पे गरज के बरसे , तन में तुम्हें समाऊं.

रचयिता : गीतकार डा अजय .

Views: 519

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ajay Kumar Sharma on March 24, 2012 at 11:39am

सभी सुधी मित्रों का आभार जिन्होंनें रचना को पढ़ा व अपनी प्रतिक्रियाएं दी . सादर नमन .

Comment by वीनस केसरी on March 23, 2012 at 1:31pm

गीतकार की वेदना रचना से स्वतः स्फुटित हो रही है
सुन्दर रचना के लिए बधाई

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on March 22, 2012 at 10:55pm

सर शशक्त भावाभियक्ति के लिए बधाई स्वीकार करें

Comment by AVINASH S BAGDE on March 22, 2012 at 7:55pm
ऋतु बसंत पतझड़ पर, छा गयी गुलिस्ताँ में,WAH Dr.Ajay ji.
Comment by AVINASH S BAGDE on March 22, 2012 at 7:55pm
ऋतु बसंत पतझड़ पर, छा गयी गुलिस्ताँ में,WAH Dr.Ajay ji.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 22, 2012 at 7:51pm

bahut achchi bhaav poorn prastuti.

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 22, 2012 at 6:25pm

काज़ल ने है बचाया, नज़र से ज़माने की ,

वो ख्वाब तुम्हारे हैं, ज़माने से मैं छिपाऊं .

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय अजय जी!

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 22, 2012 at 5:38pm

bahut sundar bhav purn prastuti. aadarniya ajay ji. sadar badhai.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई महेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

आंचलिक साहित्य

यहाँ पर आंचलिक साहित्य की रचनाओं को लिखा जा सकता है |See More
2 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हर सिम्त वो है फैला हुआ याद आ गया ज़ाहिद को मयकदे में ख़ुदा याद आ गया इस जगमगाती शह्र की हर शाम है…"
3 hours ago
Vikas replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"विकास जोशी 'वाहिद' तन्हाइयों में रंग-ए-हिना याद आ गया आना था याद क्या मुझे क्या याद आ…"
3 hours ago
Tasdiq Ahmed Khan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल जो दे गया है मुझको दग़ा याद आ गयाशब होते ही वो जान ए अदा याद आ गया कैसे क़रार आए दिल ए…"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221 2121 1221 212 बर्बाद ज़िंदगी का मज़ा हमसे पूछिए दुश्मन से दोस्ती का मज़ा हमसे पूछिए १ पाते…"
5 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, ग़ज़ल की बधाई स्वीकार कीजिए"
6 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। वो शोख़ सी निगाहें औ'…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गयामानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१।*तम से घिरे थे लोग दिवस ढल गया…"
8 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221    2121    1221    212    किस को बताऊँ दोस्त  मैं…"
8 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
15 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
15 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service