गीतों से दिल की बातें, कैसे तुम्हें सुनाऊं .
बेबस नयन की बोली, कैसे तुम्हें दिखाऊ.
दिल कुमुदनी सा देखो, प्रियतम मेरी तुम्हारा ,
चन्द्र चन्द्रिका से दिल की, कैसे इसे खिलाऊं .
दर्पण से दिल में जो भी ,संजोये तुमनें सपने ,
दर्पण में अक्स दिल का , कैसे तुम्हें दिखाऊ.
काज़ल ने है बचाया, नज़र से ज़माने की ,
वो ख्वाब तुम्हारे हैं, ज़माने से मैं छिपाऊं .
ऋतु बसंत पतझड़ पर, छा गयी गुलिस्ताँ में,
मैं खिल उठा सुमन सा , जग को ज़रा बताऊँ .
बदरी बन के छाए , धरती की प्यास पर तुम ,
धरा पे गरज के बरसे , तन में तुम्हें समाऊं.
रचयिता : गीतकार डा अजय .
Comment
सभी सुधी मित्रों का आभार जिन्होंनें रचना को पढ़ा व अपनी प्रतिक्रियाएं दी . सादर नमन .
गीतकार की वेदना रचना से स्वतः स्फुटित हो रही है
सुन्दर रचना के लिए बधाई
सर शशक्त भावाभियक्ति के लिए बधाई स्वीकार करें
bahut achchi bhaav poorn prastuti.
काज़ल ने है बचाया, नज़र से ज़माने की ,
वो ख्वाब तुम्हारे हैं, ज़माने से मैं छिपाऊं .
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय अजय जी!
bahut sundar bhav purn prastuti. aadarniya ajay ji. sadar badhai.
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