For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Dr Ajay Kumar Sharma's Blog (22)

कहाँ छिपी हो पवन सी ?

कहाँ छिपी हो

पवन सी ?

हो मुझ में 

जैसे कि

बदरी पवन में.

आती है बदरी

दिखाई भी देती है वो.

पर सत्य है ये कि

आती है सिर्फ पवन

नीर कि बूंदों को ले कर.

पर दिखती नहीं .

दिखाई तो सिर्फ देती है

बदरी ....

मैं - तुम

बदरी - पवन .

 

~ Dr Ajay Kumar Sharma

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on April 20, 2012 at 10:56am — 1 Comment

अंधे रास्ते..

अंधे रास्ते

 


ये वो रास्ते है

जो अंधे हैं

ये कर देते हैं

मजबूर पथिक को

रुकने को कभी

तो कभी लौटने को.

करते हैं जो हिम्मत

बढ़ने की आगे,

लडखड़ा जाते हैं वो भी

कुछ कदम पर ही .

आखिर क्यों ?

चांदनी सा बदन

दिलों का मिलन 

कसमें वादे  

मज़बूत इरादे 

दुनिया से बगावत

डेटिंग व दावत

माँ -बाप, मित्र अपने

मखमली -रुपहले सपने 

हो जाते हैं धूमिल 

इन अंधे रास्तों में  ..

मेरे महबूब  

नहीं…

Continue

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on April 3, 2012 at 4:10pm — 4 Comments

क्यों हम लौट चलें !

क्यों हम लौट चलें !

कि चाहत देख कर हमारी  ज़माना जलता है ,

कि घर बहार हर दम कोई फ़साना  पलता है .

निगाहें घूम जाती हैं, तेरे साथ आने से

दीवारें सुन ही लेती हैं हमारे गुनगुनाने से

क्यों हम लौट चलें !

ये अंकुर है जो फूटा है, नहीं शुरुआत ये जाना

ये बढ़ते कदम तो बस एक परवाज़ है जाना .

ये दीपक है जो लड़ता है , तूफां में अँधेरे में,

ये जुगनू चमकेगा फिर से, अंधियारे घनेरे  में

क्यों हम लौट चलें !

ये मंजिल बन चुकी है…

Continue

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on March 31, 2012 at 4:54pm — 1 Comment

गीतों से दिल की बातें, कैसे तुम्हें सुनाऊं ..

गीतों से दिल की बातें, कैसे तुम्हें सुनाऊं  .

बेबस नयन की बोली, कैसे तुम्हें दिखाऊ.

दिल कुमुदनी सा देखो, प्रियतम मेरी तुम्हारा ,

चन्द्र चन्द्रिका से दिल की, कैसे इसे खिलाऊं .

दर्पण से दिल में जो भी ,संजोये तुमनें सपने ,

दर्पण में अक्स दिल का , कैसे तुम्हें दिखाऊ.

काज़ल ने है बचाया, नज़र से ज़माने की ,

वो ख्वाब तुम्हारे हैं, ज़माने से मैं छिपाऊं .

ऋतु बसंत पतझड़ पर, छा गयी गुलिस्ताँ में,

मैं खिल उठा…

Continue

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on March 22, 2012 at 4:36pm — 8 Comments

चतुष्पथ पर...

मृगनयनी नवयौवना

लावण्य क्या कहना !

संकोच व लज्जा

बनी सुसज्जा.

सप्त-अंगुल भर

कटी प्रदेश कमाल.

ओ गजगामिनी

तेरी मदमस्त चाल.

अर्ध- पारदर्शी वस्त्र में कैद

अंग -प्रत्यंग में

लाती भूचाल,

तिर्यक दृष्टीपात

करती हृदय अघात

नारी सौंदर्य .

निहारते चक्षु.

अट्टालिकाओं से

चतुष्पथ पर...

 

 

रचयिता : डा अजय कुमार शर्मा ( सौंदर्य रस पूर्ण  बिम्ब )

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on March 15, 2012 at 11:45am — 7 Comments

तन्हाई बोली .. ! !

.

मैं

और

तन्हाई

लड़ते रहते हैं

कभी बिखरते

कभी संवरते

रहते हैं.

ओ तन्हाई !

तुम क्यों

दुःख -पीड़ा को

रखती हो अपने साथ

फिरती हो यहाँ वहां

लिये हाथों में हाथ .

तन्हाई मुस्काई

कुछ इठलाई

बोली ...

बचपन की यादें

मोहब्बत के बातें

कहानी कहती नानी

रिमझिम बरसता पानी

पहली मुलाकात

महबूब की बात

उनका इतराना

रूठना मनाना

सब के…

Continue

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on March 14, 2012 at 11:57am — 6 Comments

आगाज़...

मैनें कहा

कुछ और नहीं

सिर्फ वो ही

जो युगों से

सहा था...

सहा था फूलों नें

ख्वाबों में लहराते

सावन के झूलों नें

उन शब्दों नें

जो आ न पाए

लबों पर तुम्हारे ही

ज़ुल्मों से ...

सहा था उस प्यासे नें...

जो दम तोड़ गया

समंदर में रह कर

पर छू न पाया

पानी को जुबान से कभी.

सहा था उन पलकों नें...

जो युगों से भरी हैं

अनमोल मोतियों से

आतुर हैं

छलकने को

पर…

Continue

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on March 12, 2012 at 11:30pm — 6 Comments

मेरे कुछ हाइकू...( 5 - 7- 5 )

1.

प्रकृति प्यारी 

रुई बिछी धरती

ये बर्फ़बारी .

२.

मुखौटे छाए

जनमानस लुटा

चुनाव आये .

३.

उड़ते गिद्ध

फिर मारा आदमी

लो आया युद्ध .

४.

ये दुपहरी 

अलसाया शरीर

जेठ का माह .

रचयिता : डा अजय कुमार शर्मा

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on March 2, 2012 at 5:26pm — 6 Comments

कन्या भ्रूण हत्या ..हाइकू ( ५-७-५ )

शोख सी परी .

ज्यों बनी, खून सनी.

कोख में मरी.

 

( शोख = चंचल ; कोख = माँ का गर्भाशय / Uterus ) 

 

 रचयिता  : डा अजय कुमार शर्मा

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on March 1, 2012 at 4:08pm — 5 Comments

सीलन...

हर सुंदर

प्रभात वेला में

प्रतिदिन

मैं पाता हूँ

स्वयं को

सीलन भरी लकड़ी सा

जो चाहती है

सुलगना

और...

सुलगना भी

इस तरह की

उसमें होम हो जाए

सीलन .

सीलन अहम् की

बहुत सारे 

भ्रम की

मेरी हमसफ़र !

आओ ...

पवित्र अग्नि में

प्यार की .

भस्म कर दें

सीलन

हृदयों के

संसार की .

.

.

करोगी स्वीकार ?

मेरा निमंत्रण !!

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on March 1, 2012 at 3:00pm — 8 Comments

जन्मदिन...

जन्मदिन पर .

तुमनें दी 

शुभकामनाएं

कुछ की

प्रभु से प्रार्थनाएं .

सोचता हूँ

तुम्हें आभार दूँ

या दिल की

गहराइयों से चलकर

रूह के धरातल पर

उबलते , उफनते

विचार दूँ ?

क्या बता दूँ ?

की मैं क्यों

हो जाता हूँ उदास

क्यों बस

एक ही एहसास

मुझे कर जाता है

अंतर से बदहवास

हर साल

जब देती हो तुम

कुछ सपनों में ढाल

प्रेम से बुना

दिल से…

Continue

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on February 25, 2012 at 5:30pm — 2 Comments

फिर क्यों ?

तुम .

मेरी चेतना के पंख

रूह के मंदिर में 

बजता भोर का शंख

मन की उड़ान 

देह की जान

बनती बिखरती कहानी

निर्मल निर्झर का

बहता हुआ सा पानी

फूलों की खुशबू

या वो पवन

जो लाती है वो जादू

जो बना देता है

मतवाला अक्सर .

तुम ही तो हो

ये सब .

फिर क्यों

कभी कभी

मैं हो जाता हूँ

तन्हा.

बताओ तो जरा…

Continue

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on February 9, 2012 at 9:28pm — 1 Comment

तुमनें पूछा ...

मैं कौन हूँ ?

ये ही पूछा हैं न ?

ये मेरी ही दस्तक है

जो फैलाती हैं सुगंध

बनती है मकरंद.

जो काफी है

भौरों को मतवाला बनाने को

और कर देती है लाचार

बंद होने को पंखुड़ियों में ही

तुम नहीं देख पाए मुझको

उन परवानों के दीवानेपन में

जो झोंक देते हैं प्राण शमा पर

क्या मैं नहीं होता हूँ

उन ओस की बूंदों में

जो गुदगुदाती हैं

प्रेमियों को

रिमझिम फुहार में

बस…

Continue

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on January 18, 2012 at 4:00pm — 12 Comments

ये क्या किया तन्हाई !

ये  क्या  किया तन्हाई !

क्यूँ संजोया तुमनें उन पलों को

जो बन चुके हैं

घाव से नासूर

ढूंड पाओगी

कभी मेरा कसूर ?

गहरी साँसों का मंजर

अधूरे ख्वाबों का खंजर

जो धंस गया है दिल में

चुभनें लगा है फिर से

तुम्हारे आते ही.

कर रहा है मंथन 

भावों में

अब रिस रहा है

धीरे धीरे चीस्ते से

घावों में .

हाए वो अनलिखे मजमून

जो ख़त नहीं बन पाए

क्यों रख दिए तुमनें

तह बना कर

दिल…

Continue

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on January 17, 2012 at 3:25pm — 2 Comments

मैं और तन्हाई ...

मैं

और

तन्हाई

लड़ते रहते हैं

कभी बिखरते

कभी संवरते

रहते हैं.

ओ तन्हाई !

तुम क्यों

दुःख -पीड़ा को

रखती हो अपने साथ

फिरती हो यहाँ वहां

लिये हाथों में हाथ…

Continue

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on January 11, 2012 at 5:04pm — 1 Comment

प्यास बुझती नहीं ..

प्यास बुझती नहीं ..

देश था परतंत्र

गुजरे ज़माने की बात है

मुद्दतों बाद तुमसे मुलाकात है.

गुलामी की ज़ंजीर डली थी पाँव मे.

तपती धूप

दोपहरी जेठ की

कौन बैठता था छाओं में.

पर प्यास तो थी

जीभ पर नहीं

ज़हन में…

Continue

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on January 6, 2012 at 12:00pm — 3 Comments

तुझ बिन ...

तुझ बिन जिंदगी हमसे, कुछ ऐसे फिसल रही है ,

ज्यों कतरा कतरा जान, हर दम निकल रही है .



हर आहट पे तू आया, गफलत मुझे सताती ,

ख्वाबों से घायल नींदें , हर पल संभल रही है .



तुझे बेवफा जो कहते, वो लोग हैं बहुत से ,

लोगों को तू दिखा दे, वो वफ़ा मचल रही है .

.

मैं जानता हूँ जानम , तेरी मजबूरियों को ,

तू एक बार आ जा, मेरी…

Continue

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on January 5, 2012 at 4:49pm — 3 Comments

काम काव्य -1

काम काव्य -1

..

.

आदम

ईव

या

मैं

तुम

जैसे

मेघ

धरा .

धरा प्यासी

व्याकुल बैचैन

मेघ लिये

बिना निंद्रा नैन

नारी सम तन

गुलाब सम कोमल

विचलित सा मन

देह जैसे अम्बु निर्मल

काया छरहरी

रंग मरमरी

रूप लावण्य बेमिसाल

मस्त हिरनी सी चाल

लघु जलद अंश

बन दस्त

हुए मदमस्त

चिपक गए देह से

आत्मिक नेह से

धरा पर .

दस्त चाल कपोलों…

Continue

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on January 2, 2012 at 1:00pm — 2 Comments

नया साल

शुभकामनाएं लिए

आ गया

नया साल

क्या हुआ है

हसरतों का हाल

कुछ शिकवे हैं

तुमको हमसे

हमको तुमसे

कुछ सतह…
Continue

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on December 31, 2011 at 1:12pm — 5 Comments

तू वो ही है ना !

तू  वो  ही  है  ना !

जो  मेरे  लात  मारने  पर

सहज  ही  मुस्कुराती  थी

मेरी रग रग में भी तुरंत

गुदगुदी सी दौड़ जाती थी

ये बात तू जानती थी

मेरी हालत पहचानती थी .

और  मै



बस रहता था इंतज़ार में.

 

तेरे पेट से
बाहर निकालनें के



सोच विचार…

Continue

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on December 29, 2011 at 5:11pm — No Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service