कहाँ छिपी हो
पवन सी ?
हो मुझ में
जैसे कि
बदरी पवन में.
आती है बदरी
दिखाई भी देती है वो.
पर सत्य है ये कि
आती है सिर्फ पवन
नीर कि बूंदों को ले कर.
पर दिखती नहीं .
दिखाई तो सिर्फ देती है
बदरी ....
मैं - तुम
बदरी - पवन .
~ Dr Ajay Kumar Sharma
Added by Dr Ajay Kumar Sharma on April 20, 2012 at 10:56am — 1 Comment
अंधे रास्ते
ये वो रास्ते है
जो अंधे हैं
ये कर देते हैं
मजबूर पथिक को
रुकने को कभी
तो कभी लौटने को.
करते हैं जो हिम्मत
बढ़ने की आगे,
लडखड़ा जाते हैं वो भी
कुछ कदम पर ही .
आखिर क्यों ?
चांदनी सा बदन
दिलों का मिलन
कसमें वादे
मज़बूत इरादे
दुनिया से बगावत
डेटिंग व दावत
माँ -बाप, मित्र अपने
मखमली -रुपहले सपने
हो जाते हैं धूमिल
इन अंधे रास्तों में ..
मेरे महबूब
नहीं…
Added by Dr Ajay Kumar Sharma on April 3, 2012 at 4:10pm — 4 Comments
क्यों हम लौट चलें !
कि चाहत देख कर हमारी ज़माना जलता है ,
कि घर बहार हर दम कोई फ़साना पलता है .
निगाहें घूम जाती हैं, तेरे साथ आने से
दीवारें सुन ही लेती हैं हमारे गुनगुनाने से
क्यों हम लौट चलें !
ये अंकुर है जो फूटा है, नहीं शुरुआत ये जाना
ये बढ़ते कदम तो बस एक परवाज़ है जाना .
ये दीपक है जो लड़ता है , तूफां में अँधेरे में,
ये जुगनू चमकेगा फिर से, अंधियारे घनेरे में
क्यों हम लौट चलें !
ये मंजिल बन चुकी है…
Added by Dr Ajay Kumar Sharma on March 31, 2012 at 4:54pm — 1 Comment
गीतों से दिल की बातें, कैसे तुम्हें सुनाऊं .
बेबस नयन की बोली, कैसे तुम्हें दिखाऊ.
दिल कुमुदनी सा देखो, प्रियतम मेरी तुम्हारा ,
चन्द्र चन्द्रिका से दिल की, कैसे इसे खिलाऊं .
दर्पण से दिल में जो भी ,संजोये तुमनें सपने ,
दर्पण में अक्स दिल का , कैसे तुम्हें दिखाऊ.
काज़ल ने है बचाया, नज़र से ज़माने की ,
वो ख्वाब तुम्हारे हैं, ज़माने से मैं छिपाऊं .
ऋतु बसंत पतझड़ पर, छा गयी गुलिस्ताँ में,
मैं खिल उठा…
ContinueAdded by Dr Ajay Kumar Sharma on March 22, 2012 at 4:36pm — 8 Comments
मृगनयनी नवयौवना
लावण्य क्या कहना !
संकोच व लज्जा
बनी सुसज्जा.
सप्त-अंगुल भर
कटी प्रदेश कमाल.
ओ गजगामिनी
तेरी मदमस्त चाल.
अर्ध- पारदर्शी वस्त्र में कैद
अंग -प्रत्यंग में
लाती भूचाल,
तिर्यक दृष्टीपात
करती हृदय अघात
नारी सौंदर्य .
निहारते चक्षु.
अट्टालिकाओं से
चतुष्पथ पर...
रचयिता : डा अजय कुमार शर्मा ( सौंदर्य रस पूर्ण बिम्ब )
Added by Dr Ajay Kumar Sharma on March 15, 2012 at 11:45am — 7 Comments
.
मैं
और
तन्हाई
लड़ते रहते हैं
कभी बिखरते
कभी संवरते
रहते हैं.
ओ तन्हाई !
तुम क्यों
दुःख -पीड़ा को
रखती हो अपने साथ
फिरती हो यहाँ वहां
लिये हाथों में हाथ .
तन्हाई मुस्काई
कुछ इठलाई
बोली ...
बचपन की यादें
मोहब्बत के बातें
कहानी कहती नानी
रिमझिम बरसता पानी
पहली मुलाकात
महबूब की बात
उनका इतराना
रूठना मनाना
सब के…
ContinueAdded by Dr Ajay Kumar Sharma on March 14, 2012 at 11:57am — 6 Comments
मैनें कहा
कुछ और नहीं
सिर्फ वो ही
जो युगों से
सहा था...
सहा था फूलों नें
ख्वाबों में लहराते
सावन के झूलों नें
उन शब्दों नें
जो आ न पाए
लबों पर तुम्हारे ही
ज़ुल्मों से ...
सहा था उस प्यासे नें...
जो दम तोड़ गया
समंदर में रह कर
पर छू न पाया
पानी को जुबान से कभी.
सहा था उन पलकों नें...
जो युगों से भरी हैं
अनमोल मोतियों से
आतुर हैं
छलकने को
पर…
ContinueAdded by Dr Ajay Kumar Sharma on March 12, 2012 at 11:30pm — 6 Comments
1.
प्रकृति प्यारी
रुई बिछी धरती
ये बर्फ़बारी .
२.
मुखौटे छाए
जनमानस लुटा
चुनाव आये .
३.
उड़ते गिद्ध
फिर मारा आदमी
लो आया युद्ध .
४.
ये दुपहरी
अलसाया शरीर
जेठ का माह .
रचयिता : डा अजय कुमार शर्मा
Added by Dr Ajay Kumar Sharma on March 2, 2012 at 5:26pm — 6 Comments
शोख सी परी .
ज्यों बनी, खून सनी.
कोख में मरी.
( शोख = चंचल ; कोख = माँ का गर्भाशय / Uterus )
रचयिता : डा अजय कुमार शर्मा
Added by Dr Ajay Kumar Sharma on March 1, 2012 at 4:08pm — 5 Comments
हर सुंदर
प्रभात वेला में
प्रतिदिन
मैं पाता हूँ
स्वयं को
सीलन भरी लकड़ी सा
जो चाहती है
सुलगना
और...
सुलगना भी
इस तरह की
उसमें होम हो जाए
सीलन .
सीलन अहम् की
बहुत सारे
भ्रम की
मेरी हमसफ़र !
आओ ...
पवित्र अग्नि में
प्यार की .
भस्म कर दें
सीलन
हृदयों के
संसार की .
.
.
करोगी स्वीकार ?
मेरा निमंत्रण !!
Added by Dr Ajay Kumar Sharma on March 1, 2012 at 3:00pm — 8 Comments
जन्मदिन पर .
तुमनें दी
शुभकामनाएं
कुछ की
प्रभु से प्रार्थनाएं .
सोचता हूँ
तुम्हें आभार दूँ
या दिल की
गहराइयों से चलकर
रूह के धरातल पर
उबलते , उफनते
विचार दूँ ?
क्या बता दूँ ?
की मैं क्यों
हो जाता हूँ उदास
क्यों बस
एक ही एहसास
मुझे कर जाता है
अंतर से बदहवास
हर साल
जब देती हो तुम
कुछ सपनों में ढाल
प्रेम से बुना
दिल से…
ContinueAdded by Dr Ajay Kumar Sharma on February 25, 2012 at 5:30pm — 2 Comments
तुम .
मेरी चेतना के पंख
रूह के मंदिर में
बजता भोर का शंख
मन की उड़ान
देह की जान
बनती बिखरती कहानी
निर्मल निर्झर का
बहता हुआ सा पानी
फूलों की खुशबू
या वो पवन
जो लाती है वो जादू
जो बना देता है
मतवाला अक्सर .
तुम ही तो हो
ये सब .
फिर क्यों
कभी कभी
मैं हो जाता हूँ
तन्हा.
बताओ तो जरा…
ContinueAdded by Dr Ajay Kumar Sharma on February 9, 2012 at 9:28pm — 1 Comment
मैं कौन हूँ ?
ये ही पूछा हैं न ?
ये मेरी ही दस्तक है
जो फैलाती हैं सुगंध
बनती है मकरंद.
जो काफी है
भौरों को मतवाला बनाने को
और कर देती है लाचार
बंद होने को पंखुड़ियों में ही
तुम नहीं देख पाए मुझको
उन परवानों के दीवानेपन में
जो झोंक देते हैं प्राण शमा पर
क्या मैं नहीं होता हूँ
उन ओस की बूंदों में
जो गुदगुदाती हैं
प्रेमियों को
रिमझिम फुहार में
बस…
ContinueAdded by Dr Ajay Kumar Sharma on January 18, 2012 at 4:00pm — 12 Comments
ये क्या किया तन्हाई !
क्यूँ संजोया तुमनें उन पलों को
जो बन चुके हैं
घाव से नासूर
ढूंड पाओगी
कभी मेरा कसूर ?
गहरी साँसों का मंजर
अधूरे ख्वाबों का खंजर
जो धंस गया है दिल में
चुभनें लगा है फिर से
तुम्हारे आते ही.
कर रहा है मंथन
भावों में
अब रिस रहा है
धीरे धीरे चीस्ते से
घावों में .
हाए वो अनलिखे मजमून
जो ख़त नहीं बन पाए
क्यों रख दिए तुमनें
तह बना कर
दिल…
ContinueAdded by Dr Ajay Kumar Sharma on January 17, 2012 at 3:25pm — 2 Comments
मैं
और
तन्हाई
लड़ते रहते हैं
कभी बिखरते
कभी संवरते
रहते हैं.
ओ तन्हाई !
तुम क्यों
दुःख -पीड़ा को
रखती हो अपने साथ
फिरती हो यहाँ वहां
लिये हाथों में हाथ…
Added by Dr Ajay Kumar Sharma on January 11, 2012 at 5:04pm — 1 Comment
प्यास बुझती नहीं ..
देश था परतंत्र
गुजरे ज़माने की बात है
मुद्दतों बाद तुमसे मुलाकात है.
गुलामी की ज़ंजीर डली थी पाँव मे.
तपती धूप
दोपहरी जेठ की
कौन बैठता था छाओं में.
पर प्यास तो थी
जीभ पर नहीं
ज़हन में…
ContinueAdded by Dr Ajay Kumar Sharma on January 6, 2012 at 12:00pm — 3 Comments
तुझ बिन जिंदगी हमसे, कुछ ऐसे फिसल रही है ,
ज्यों कतरा कतरा जान, हर दम निकल रही है .
हर आहट पे तू आया, गफलत मुझे सताती ,
ख्वाबों से घायल नींदें , हर पल संभल रही है .
तुझे बेवफा जो कहते, वो लोग हैं बहुत से ,
लोगों को तू दिखा दे, वो वफ़ा मचल रही है .
.
मैं जानता हूँ जानम , तेरी मजबूरियों को ,
तू एक बार आ जा, मेरी…
Added by Dr Ajay Kumar Sharma on January 5, 2012 at 4:49pm — 3 Comments
काम काव्य -1
..
.
आदम
ईव
या
मैं
तुम
जैसे
मेघ
धरा .
धरा प्यासी
व्याकुल बैचैन
मेघ लिये
बिना निंद्रा नैन
नारी सम तन
गुलाब सम कोमल
विचलित सा मन
देह जैसे अम्बु निर्मल
काया छरहरी
रंग मरमरी
रूप लावण्य बेमिसाल
मस्त हिरनी सी चाल
लघु जलद अंश
बन दस्त
हुए मदमस्त
चिपक गए देह से
आत्मिक नेह से
धरा पर .
दस्त चाल कपोलों…
Added by Dr Ajay Kumar Sharma on January 2, 2012 at 1:00pm — 2 Comments
Added by Dr Ajay Kumar Sharma on December 31, 2011 at 1:12pm — 5 Comments
तू वो ही है ना !
जो मेरे लात मारने पर
सहज ही मुस्कुराती थी
मेरी रग रग में भी तुरंत
गुदगुदी सी दौड़ जाती थी
ये बात तू जानती थी
मेरी हालत पहचानती थी .
और मै
बस रहता था इंतज़ार में.
तेरे पेट से बाहर निकालनें के
सोच विचार…
Added by Dr Ajay Kumar Sharma on December 29, 2011 at 5:11pm — No Comments
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