मैनें कहा
कुछ और नहीं
सिर्फ वो ही
जो युगों से
सहा था...
सहा था फूलों नें
ख्वाबों में लहराते
सावन के झूलों नें
उन शब्दों नें
जो आ न पाए
लबों पर तुम्हारे ही
ज़ुल्मों से ...
सहा था उस प्यासे नें...
जो दम तोड़ गया
समंदर में रह कर
पर छू न पाया
पानी को जुबान से कभी.
सहा था उन पलकों नें...
जो युगों से भरी हैं
अनमोल मोतियों से
आतुर हैं
छलकने को
पर रुके हैं
किसी के नाम की
रुसवाई रोकने को .
पता है मुझे
तुम्हारे कमज़ोर
पहरे की ताकत !
जो लग नहीं सकता
उन धडकनों पर
जो धड़कती है
एक दूसरे से ही
साथ साथ !
साथ साथ ! !
दे कर
शाह और मात
तुम्हारे पहरे को.
देखो तो दर्पण में
अपने चेहरे को
जो हो चुका है विकृत
विरोध करके
अपने अंतर्मन
की आवाज़ का
सत्य व प्रेम
की आगाज़ का...
रचयिता : डा अजय कुमार शर्मा
Comment
आदरणीय सर्व श्री सौरभ पाण्डेय जी , संदीप दिवेदी जी , प्रदीप कुशवाहा जी तथा आदरणीया श्रीमती राजेश कुमारी जी ...हृदय से आभार ..
डाक्टर साहब !! इस अभिव्यक्ति पर मेरा सादर वन्दन लें. प्रवाह के विरुद्ध कुछ भी एक जकड़न है. हर बिम्ब सामान्य वस्तुओं का प्रतिबिम्ब है, लेकिन प्रयुक्त हुए तो क्या ज़ादुई अनुभूति होती है. वैसे तो हर इंगित आलोड़न-सा मचा देता है, लेकिन स्व-अंकुश की परिणति -
देखो तो दर्पण में
अपने चेहरे को
जो हो चुका है विकृत
विरोध करके
अपने अंतर्मन
की आवाज़ का
सत्य व प्रेम
की आगाज़ का...
वाह ! वाह !! वाह !!!
हार्दिक बधाई.
मनोहारी कविता डॉ. साहब| भावपूर्ण अभिव्यक्ति|
धन्यवाद .
बहुत सुन्दर भाव पूर्ण अभिव्यक्ति. बधाई.
shaandar bhaavabhivyakti Ajay ji.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online