.
मैं
और
तन्हाई
लड़ते रहते हैं
कभी बिखरते
कभी संवरते
रहते हैं.
ओ तन्हाई !
तुम क्यों
दुःख -पीड़ा को
रखती हो अपने साथ
फिरती हो यहाँ वहां
लिये हाथों में हाथ .
तन्हाई मुस्काई
कुछ इठलाई
बोली ...
बचपन की यादें
मोहब्बत के बातें
कहानी कहती नानी
रिमझिम बरसता पानी
पहली मुलाकात
महबूब की बात
उनका इतराना
रूठना मनाना
सब के सब
अंधेरों में खो जाते हैं
तन्हाई बगैर
याद नहीं आते हैं.
दिलों के रिश्ते जब
पुराने पड़ जाते हैं
कुछ समय की
चोट से सड़ जाते हैं.
तन्हाई
जब फैलाती है बाहें
तो खोल देती है
दिलों की बंद राहें .
मेरे मन
मेरे दोस्त
मेरा साथ कभी मत छोडना
ख़ुशी पानी हैं तो
तन्हाई का साथ
कभी मत छोडना
.
.
.
.
तन्हाई का साथ
कभी मत छोडना.
रचयिता : डा अजय कुमार शर्मा
Comment
सार्थक प्रयास हेतु सादर बधाई.
ख़ुशी पानी हैं तो
तन्हाई का साथ
कभी मत छोडना
सुन्दर भाव एवं प्रस्तुति. बधाई.
धन्यवाद सर्व श्री अरुण कुमार पाण्डेय जी , गणेशजी बागी जी ,संदीप दिवेदी जी ..आपके आशीर्वचन ..मेरा सौभाग्य ..साथ साथ चल रहे है मेरी जिंदगी में .
सच कहा डॉ अजय जी तन्हाई में ही वो अवसर आता है जब हम अपने अतीत से बातें कर पाते है ... अपनी खुशियों और ग़म को खुद से ही साझा कर पाते है | मधुर अभिव्यक्ति हेतु हार्दिक अबधाई ||
निश्चित ही गहराई तक अपनी छाप छोडने में सफल है यह रचना, दुःख ना हो तो सुख का महत्व समझ में नहीं आता उसी प्रकार तन्हाई भी आवश्यक है मिलन की याद को सहेजने के लिए, अच्छी रचना पर बधाई स्वीकार हो ।
डॉ. साहब तन्हाई क्या क्या कहती है और क्या-क्या सहेज कर रखती है यह सब आपकी कविता बहुत सुन्दर ढंग से परिभाषित कर रही है| सुन्दर कविता के लिए हार्दिक बधाई..
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