मृगनयनी नवयौवना
लावण्य क्या कहना !
संकोच व लज्जा
बनी सुसज्जा.
सप्त-अंगुल भर
कटी प्रदेश कमाल.
ओ गजगामिनी
तेरी मदमस्त चाल.
अर्ध- पारदर्शी वस्त्र में कैद
अंग -प्रत्यंग में
लाती भूचाल,
तिर्यक दृष्टीपात
करती हृदय अघात
नारी सौंदर्य .
निहारते चक्षु.
अट्टालिकाओं से
चतुष्पथ पर...
रचयिता : डा अजय कुमार शर्मा ( सौंदर्य रस पूर्ण बिम्ब )
Comment
श्री संदीप दिवेदी जी व श्री अश्वनी जी का सादर आभार व नमन ..आपकी साहित्यिक कृपा से मैं कृतार्थ हूँ .
अति सुंदर एवम संग्रहणीय कृति ........
अति सुन्दर कृति डॉ. साहब| बहुत ही बढ़िया| सादर,
सादर आभार ..श्री प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा जी ..नमन .
bahut sunda tarike se sundar chitran, badhai mahodaya ji.
आदरणीय श्री सौरभ पाण्डेय जी ..आप का आंकलन मेरे लिये अमूल्य निधि है .आभार स्वीकार करें .
अंतर्दृष्टि को विवेचित क्या किया चित्त में संग्रहीत उछाह भाव उद्गार हो गये !! .. वाह !
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