ये क्या किया तन्हाई !
क्यूँ संजोया तुमनें उन पलों को
जो बन चुके हैं
घाव से नासूर
ढूंड पाओगी
कभी मेरा कसूर ?
गहरी साँसों का मंजर
अधूरे ख्वाबों का खंजर
जो धंस गया है दिल में
चुभनें लगा है फिर से
तुम्हारे आते ही.
कर रहा है मंथन
भावों में
अब रिस रहा है
धीरे धीरे चीस्ते से
घावों में .
हाए वो अनलिखे मजमून
जो ख़त नहीं बन पाए
क्यों रख दिए तुमनें
तह बना कर
दिल के घावों में
और आज
क्यों खोल दी वो तह
जिनके बीच
छिपा है समंदर
पीड़ा का...
ज़मानें की निष्ठुर
क्रीडा का...
वो गुलाबी लिफाफा
जो संजोए था
अनलिखे खतों
का मजमून
क्यों तड़फ उठा है आज
तुम्हारी एक
दस्तक से ही .
ये पंखुड़ियां गुलाब की
याद दिलाती शबाब की
जो फिसल गयी थी
उनके मखमली बालों से
(याद रखना तन्हाई )
सूखी नहीं हैं आज भी .
वो गुलाबी पंखुड़ियां
ताज़ा हैं मेरी रूह में
चिपक सी गयी हैं अब तो
और दे रही हैं
एक मदहोश कर देने वाली सुगंध
जो आती थी
सिर्फ उनके गेसुओं से ही .
अरे तुम ठीक ही तो कहती हो
जब भी मैं
खोलता हूँ परतें
तो सलाख़ों पर झूलती
बारिश की बूंदें
याद दिलाती हैं
उन मोतियों को
जो नहीं तैर रहे थे
सिर्फ मेरे नयनों में ही
बल्कि एक सैलाब ले आये थे
जो रुक नहीं पाया था
उनकी आँखों में भी.
मरमरी गालों पर
छलके वो मोती और
इन नयनों का सैलाब
समझ नहीं पायी हो तुम
इतने सालों बाद भी
हाँ तन्हाई
काश तुम समझ पाती
मैं और वो
जैसे दिया और बाती
अलग हुए ही नहीं.
कैसे हो सकते हैं विदा वो
दिल दिमाग और मन से
समा गए हैं जो
मेरे साँसों के प्राण में
मेरी रूह की शान में
तभी तो
धडकता है
ये दिल
आज भी एक सुकून से
क्योंकि
वो मुझ में हैं
मैं उनमें
तन्हाई में भी
भीड़ में भी ..
रचयिता : डा अजय कुमार शर्मा
Comment
धन्यवाद सौरभ जी....आपके शब्द मेरा हृदय छू गए हैं .....
इस रचना का होना रचनाकार के अनगिन उलझे भाव-विचारों का संयोजन है. आशावादिता की लौ बाले इस रचना का समापन मानों अदम्य विश्वास का उत्तरोत्तर संप्रेषण है. इन पंक्तियों की संवेदना पर मेरी विशेष बधाई स्वीकार करें -
हाए वो अनलिखे मजमून
जो ख़त नहीं बन पाए
क्यों रख दिए तुमनें
तह बना कर
दिल के घावों में ...... वाह - वाह !!
सधन्यवाद.
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