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मैं

और

तन्हाई

लड़ते रहते हैं

कभी बिखरते

कभी संवरते

रहते हैं.

ओ तन्हाई !

तुम क्यों

दुःख -पीड़ा को

रखती हो अपने साथ

फिरती हो यहाँ वहां

लिये हाथों में हाथ .

तन्हाई मुस्काई

कुछ इठलाई

बोली ...

बचपन की यादें

मोहब्बत के बातें

कहानी कहती नानी

रिमझिम बरसता पानी

पहली मुलाकात

महबूब की बात

उनका इतराना

रूठना मनाना

सब के सब

अंधेरों में खो जाते हैं

तन्हाई बगैर

याद नहीं आते हैं.

दिलों के रिश्ते जब

पुराने पड़ जाते हैं

कुछ समय की

चोट से सड़ जाते हैं.

.

.

.

तन्हाई

जब फैलाती है बाहें

तो खोल देती है

दिलों की बंद राहें .

मेरे मन

मेरे दोस्त

ख़ुशी पानी हैं तो

तन्हाई का साथ

कभी मत छोडना

.

.

.

.

तन्हाई का साथ

कभी मत छोडना.

 

रचयिता : डा अजय कुमार शर्मा

 

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Comment by योगराज प्रभाकर on January 13, 2012 at 11:27am

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