हर सुंदर
प्रभात वेला में
प्रतिदिन
मैं पाता हूँ
स्वयं को
सीलन भरी लकड़ी सा
जो चाहती है
सुलगना
और...
सुलगना भी
इस तरह की
उसमें होम हो जाए
सीलन .
सीलन अहम् की
बहुत सारे
भ्रम की
मेरी हमसफ़र !
आओ ...
पवित्र अग्नि में
प्यार की .
भस्म कर दें
सीलन
हृदयों के
संसार की .
.
.
करोगी स्वीकार ?
मेरा निमंत्रण !!
Comment
सारगर्भीत रचना पर बधाई
बहुत सुन्दर भाव. बधाई डॉ अजय जी.
डा. अजयजी, आपके प्रस्तुत रचना में भाव-पक्ष को बेहतरशब्द मिले हैं. अपेक्षा है, आप पद्य शिल्प-पक्ष पर भी आप उचित ध्यान दें.
शुभेच्छा .. .
सभी माननीय मित्रों व द्वारा प्रेषित प्रेरणाप्रद भावों का हृदय से आभार ...इन शब्दों के साथ
तेरी याद.
पंछी की
स्वच्छंद उड़ान.
तेरे आंसू
सुनामी में उजड़ता
सपनों का बागान .
डा अजय कुमार शर्मा ..
सुन्दरतम भावों की अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई डॉ. साहब| साभार,
bahut umda bhaav atiuttam....vaah...badhaai sweekaren.
सीलन अहम् की
बहुत सारे
भ्रम की
मेरी हमसफ़र !
आओ ...
पवित्र अग्नि में
प्यार की .
भस्म कर दें
sundar bhav, badhai.
शानदार !!!!!! बहुत ही प्यारी रचना , सीधे ह्रदय को स्पर्श करती हुई , बहुत बहुत बधाई डाक्टर साहब इस बेहतरीन अभिव्यक्ति हेतु |
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