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भारत का भविष्य बनाना है.

जहाँ में फैली भूख गरीबी 
भ्रष्टाचार  एक  महामारी है 
फलता फूलता था धर्म  जहाँ  
वहां आन बसे व्यभिचारी  हैं 
सरे बाजार लुटती अस्मत अब 
लूट  घसीट  के ये बड़े पुजारी हैं 
छीन निवाला भरें पेट आपना  
न कोई चिंता न शर्मसारी है 
जिस कोख से इनने जनम  लिया 
जिस धरती ने  पोसा पाला है 
क्यों भूल गए ये  माँ का  ऋण
दुष्कर्मों से मुंह किया क्यों काला है 
नोच रहे जन जन  का तन श्वेत वस्त्र 
मीठी वाणी पीछे पीठ  भोंकते  भाला हैं 
रोये शिशु चाहें सिसके नर नारी अब 
अंक में साकी अधरों से लगी जो हाला है 
अपना दोष न देखे हम 
 धरम धरम चिल्लाते हैं 
दूहें चलनी में अपने करम 
दोषी क्यों उन्हें ठहराते  हैं 
आदत जो पड़ी है मांगन  की 
भिखारी बन दर दर भटकते हैं 
ली  है हाथों  में खुद बैसाखी 
जहाँ में बने अपाहिज फिरते  हैं  
बंद आँखों में  खाली देखते सपना  
भूल तुम्हारी ये बड़ी भारी  है 
जग जूठा झूठे  नाते बंधन  
इस धरा पर   कोई अपना हैं  
मसीहा तो कब का दफन हो चुका   
मगर मसीहा अब भी यहाँ  फिरते हैं
करेंगे उद्दधार  तुम्हारा हम 
आओ शरण मेरी का दम भी  भरते हैं  
बात दीगर ये जानो अब तुम  
बदले  रूप में हाजिर मौत के मसीहा हैं 
सोये  पड़े क्यूँ  जागो तुम अब  
तुम्ही में बसे  दुर्गा राम और कन्हैया हैं 
खुद अपने  मसीहा तुम हो प्यारे 
आये  कौन जो तेरी किस्मत संवारे 
सारी कायनात  तो तेरी है
समेट ले प्यार से बाँहों में 
सूनी  निगाहे तेरी  पगले फिर 
आसमान को क्यों तरसती है 
बन काल करो अब प्रबल प्रहार 
टूट पड़ो अब तुम्हारी बारी है 
शीतल करो उस आग को अपनी 
नैनों से तेरी बरसों से बरसती है, 
स्वराज तो हमको मिल चुका
सुराज तुम्हे अब लाना है 
वीर शहीदों की क़ुरबानी पर 
भारत का भविष्य बनाना है. 
जय हिंद. वन्दे मातरम्.

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 1, 2012 at 6:01pm

आदरणीय उमा शंकर जी, सादर.

आपने अमूल्य समय दिया . स्नेह हेतु धन्यवाद.

Comment by UMASHANKER MISHRA on May 31, 2012 at 10:34pm

अच्छी कविता वीर रस से भरी

Comment by RAJEEV KUMAR JHA on April 9, 2012 at 8:53am

बहुत सुन्दर कविता,आदरणीय प्रदीप जी.

स्वराज तो हमको मिल चुका
सुराज तुम्हे अब लाना है
वीर शहीदों की क़ुरबानी पर
भारत का भविष्य बनाना है
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं.
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 9, 2012 at 4:51am
खुद अपने  मसीहा तुम हो प्यारे 
आये  कौन जो तेरी किस्मत संवारे
बन काल करो अब प्रबल प्रहार 
टूट पड़ो अब तुम्हारी बारी है 
कोयल की कूक जो मेरे कानों  में  सुने पद रही है चीख कर शायद यही का रही है! अहो! जागो, उठो, बदलो!
adarneey kushwaha jee sandae wandan!

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