मेरा यार मुझसे जुदा हुआ,
मेरी जान जैसे निकल गई.
मुझे प्यार उसका न मिल सका,
उसे चाहना या न चाहना
उसे पूजना या न पूजना
मेरी चाहतों का हिसाब क्या,
मेरी रूह भी हो विकल गई..
मुझे प्यार उसका न मिल सका,
मेरी आह मुझमे ही मिल गई..
कोई और तेरा न नाम ले
तुझे रख सकूँ निगाह में
तेरी बात भी जो हुई कहीं,
जुबाँ यार मेरी फिसल गई..
मुझे प्यार उसका न मिल सका,
मेरी आह मुझमे ही मिल गई..
Comment
बहुत खूब शैलेन्द्र जी , अच्छी रचना , ऐसे ख्यालात यूँ ही नहीं आते :-)
बधाई स्वीकार करें |
शैलेन्द्र जी नमस्कार, बहुत अच्छा लिखा है ..जो चला गया वो कभी मिल भी जाये गा...dont worry
"आदरणीय सतीश सर सादर नमन, बिल्कुल सही कहा आपने "जौ माँगा पाइअ बिधि पाहीं, ए रखिअहिं सखि आँखिन्ह माही."
प्रोत्साहन हेतु कोटि कोटि धन्यवाद सर
कोई और तेरा न नाम ले
तुझे रख सकूँ निगाह में
चाहत की यही प्रकृति है ......... प्रेयसी को दुनिया की निगाहों से छिपा कर रखना ही तो हर प्रेमी का यत्न होता है ....... बहुत खूब , बधाई मृदु जी
आदरणीय Arun Kumar Pandey 'Abhinav सर सादर नमन, प्रोत्साहन हेतु कोटि कोटि धन्यवाद
उसे चाहना या न चाहना
उसे पूजना या न पूजना
मेरी चाहतों का हिसाब क्या,
मेरी रूह भी हो विकल गई..
अति सुन्दर इस अभिव्यक्ति पर अनंत बधाइयाँ !!
आदरनीय Raj Lally Sharma सर प्रोत्साहन हेतु आभार
आदरणीय सौरभ सर सादर प्रणाम, सर ऑडिट पे गया हुआ था लौटते समय रास्ते में वो बस ऐसे ही गुनगुना रहा था, वही यहाँ पर पोस्ट कर दिया. आपकी अपेक्षाओं पर खरा उतरने का प्रयत्न करूँगा.
सादर
श्री arunendra mishra जी सराहना हेतु आभार
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