ये दुनिया की रस्मे
ये रीति- रिवाज
नहीं काम की चीज कुछ भी
आज....................
ख़त्म हो रहा है
मोहब्बत का रिश्ता
वफा बन गयी है
वफा की मोहताज
ये दुनिया की रस्मे..................
तडपता - तरसता
हर दिल यहाँ है
प्यार पल पल में होता
बदलता जहाँ है
लाख अपराध कर ले
चाहिए फिर भी
सभ्य समाज
ये दुनिया की रस्मे ...................
न खुशिओ की चर्चा , न गम का फ़साना
ये दुनिया है मेला , न कोई ठिकाना
ये सच जनता है हर एक इंसान
मगर अनसुनी कर रहा है
मन की आवाज
ये दुनिया की रस्मे ....................!!
Comment
न खुशिओ की चर्चा , न गम का फ़साना
ये दुनिया है मेला , न कोई ठिकाना
ये सच जनता है हर एक इंसान
मगर अनसुनी कर रहा है
मन की आवाज
ये दुनिया की रस्मे ...................
वाह ! बहुत खूब ! सुन्दर पंक्तियाँ सोनम जी !
न खुशिओ की चर्चा , न गम का फ़साना
ये दुनिया है मेला , न कोई ठिकाना
ये सच जनता है हर एक इंसान
मगर अनसुनी कर रहा है
मन की आवाज
ये दुनिया की रस्मे ..
sundar bhav. badhai.
न खुशिओ की चर्चा , न गम का फ़साना
ये दुनिया है मेला , न कोई ठिकाना
ये सच जनता है हर एक इंसान
मगर अनसुनी कर रहा है
मन की आवाज
बहुत अच्छे विचार प्रस्तुत किये आपने| रचना पसंद आई| आभार,
Sonam saini ji aaj ke halaat par likhi achchi bhavabhivyakti.badhaai.
लाख अपराध कर ले
चाहिए फिर भी
सभ्य समाज
ये दुनिया की रस्मे ...................
bilkul sahi likha hai.
achchhi rachna.
badhai
ख़त्म हो रहा है
मोहब्बत का रिश्ता
वफा बन गयी है
वफा की मोहताज
ये दुनिया की रस्मे..................
दौर और हालात की खुबसूरत बयानी करती रचना हार्दिक बधाई सोनम जी आपको !!
Thank You sir.
ये सच जानता है हर एक इंसान
मगर अनसुनी कर रहा है
सोनम सैनी जी अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकारें |
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