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मेरे दरिया तुम्हें कहाँ कहाँ न ढूँढा बादल ने.....

हम तो बादल हैं ...........
बरसे कभी नहीं बरसे.....

सफ़र किया था शुरू बेपनाह दरिया से,
झूमे खेले लहर की गोदी में,
जिन के सीने में मोती और तन पे चाँदी थी,

तभी पड़ी जो वहां तेज़ किरन सूरज की,
हम थे एक बूंद,हमारी थी भला क्या औकात,
निकल पड़े हम समंदर से पल में भाप हुए,

तमाम रास्तों से चल के बस भटकते हुए,
लोगों को कहते और खुद को सिर्फ सुनते हुए,
किसी आंगन औ किसी सड़क को भिगोते हुए,

कभी पेड़ों औ कभी बस्तियों के जंगल में,
तलाश करते रहे वो ज़मीं जहाँ था कभी,
एक दरिया जो मेरा घर हुआ करता था,

मगर कहीं न दिखे वो ज़मीन और गगन,
किरन जो मुझ को उठा कर यहाँ तलक लायी,
उसी की आँच ने दरिया को भी सुखा डाला,

अब तो एक बेवजह अनाम सफ़र है जारी,
किसी को गर्ज़ क्या हम हैरान रहे या तरसें,
यूँ भी...हम तो बादल हैं....
बरसे कभी नहीं बरसे.....

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Comment

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Comment by Sarita Sinha on April 23, 2012 at 9:09pm

आदरणीय अरुण  जी , कविता की सराहना करने के लिए आप का धन्यवाद.....

Comment by Abhinav Arun on April 23, 2012 at 1:13pm

हम थे एक बूंद,हमारी थी भला क्या औकात,
निकल पड़े हम समंदर से पल में भाप हुए,

bahut sundar bhaav hai is kavita men hardik badhai adarniy sarita ji aapko !!

Comment by Sarita Sinha on April 23, 2012 at 1:11pm

 आदरणीय सौरभ पाण्डे जी, नमस्कार,

मेरी इतनी मामूली सी कविता पर  जो  आपने इतनी  सुन्दर टिपण्णी  लिख  दी है ,वोअपने आप में ही एक अति सुन्दर कविता है...
आप का बहुत बहुत धन्यवाद...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 22, 2012 at 11:19pm

दरिया, बादल. नाम ही स्वयं में उत्फुल्लता, अल्हड़पन और सीमाहीनता का सात्विक परिचायक है. और जो कुछ रचनाकार की मनस से उमड़ कर सापेक्ष हुआ है वह पर्णाग्र पर अँटकी प्रात की ओस की निर्दोष बूँद की तरह भावमय है जिसकी सुन्दरता तो सभी देखते हैं और स्वीकारते हैं, लेकिन उसके होने के पीछे की दशा को समझने वाला कोई आत्मीय ही होता है जिस का साथ कुछ बड़भागी ही जी पाते हैं.

रचना की भाव-दशा के लिये, सरिताजी, हार्दिक बधाई.

Comment by Sarita Sinha on April 22, 2012 at 11:01pm

संदीप जी

 "मनमौजी बादलों की मनमानी को रोकना  होगा,
 अब तो बादलों को बरसना ही होगा.."
Comment by Sarita Sinha on April 22, 2012 at 10:57pm

आदरणीय राजेश जी, नमस्कार,

मन से कविता पढने और सराहना करने केलिए आप का धन्यवाद...
Comment by Sarita Sinha on April 22, 2012 at 10:48pm

वंदना जी, आप का बहुत बहुत धन्यवाद ..

Comment by Sarita Sinha on April 22, 2012 at 10:47pm

प्रिय सोनम जी, सस्नेह, 

कमाल  का    आप का नजरिया है....पसंद करने के लिए धन्यवाद,,,
Comment by Sarita Sinha on April 22, 2012 at 10:39pm

प्रिय महिमा जी, नमस्कार,

ये तो है, मन के भाव कब कहाँ पहुँच जायें कुछ भरोसा नहीं....
Comment by Sarita Sinha on April 22, 2012 at 10:35pm

आदरणीय कुशवाहा जी, नमस्कार,

आप के उत्साहवर्धन और सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद...

कृपया ध्यान दे...

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