स्नेही मित्रों, सुना है, 8 मई को मदर्स ' डे मनाया जाता है...यानि कि साल का एक दिन माँ के नाम...इस की शुरुआत कब और क्यूँ हुई, ये मुझे नहीं पता , न जानना चाहती हूँ..बस अचम्भा इस बात का होता है कि मदर्स ' डे की शुरुआत करने वाले ने यह नहीं बताया कि साल के बाकी दिनों में माँ के लिए कौन से जज़्बात रखने हैं...
अगर किसी और दिन माँ को याद करना हो या अपने उद्गार व्यक्त करने हों तो कही उस के लिए कोई सज़ा तो निर्धारित नहीं है...फिलहाल मुझे तो आज ही माँ के लिए कुछ कहना है....मुझे अफ़सोस है कि मैं दिन, महीने का ख्याल नहीं रख पाई..इतना ख्याल ही नहीं आया कि माँ को आज याद न कर के 8 मई को याद करना है....बस यूँ ही.......
मैं खुद से जब थक जाती हूँ,
वो जाने कहाँ से आती है,
आँखें खोलूं या बंद रखूं,
वो ख्यालों में मंडराती है,
ठन्डे नाज़ुक से हाथों से,
पेशानी को सहलाती है,
दिन भर कि धूल से क्या मतलब,
वो प्यार से गले लगाती है,
नाज़ुक हाथों में दो रोटी,
चिमटे से ले कर आती है,
बस एक निवाला और खा ले,
बस ये ही कहते जाती है,
तू इतना क्यूँ थक जाती है,
आ मेरी गोद में सर रख ले,
मैं लोरी एक सुनाती हूँ,
तू सुख कि निंदिया में सो ले ,
फिर नींद मुझे यूँ आ जाये,
कि कोई आहट सरगोशी,
मेरे कानों तक न पहुंचे,
न टूटे मेरी बेहोशी,
मैं यूँ ही उस कि गोदी में,
ये सारी उम्र बिता डालूं ,
फिर काश कभी सूरज न उगे,
ये सपना बस चलता जाये,
कब कैसे कहाँ खुदा जाने,
वो ठंडा आँचल छूट गया,
सब कुछ पाया पर क्या पाया,
अन्दर अन्दर कुछ टूट गया,
दूधों से रोज़ नहाती हूँ,
पूतों से रहती हरी भरी,
जो सिर्फ मुझी पर छलका था,
वो दूध कहाँ अब पाऊं कभी,
अब जब ममता से भर कर मैं,
बच्चों को गले लगाती हूँ,
लगता है यूँ मैं उन में हूँ,
और मेरी जगह मेरी माँ है,
सुनने को कान तरसते हैं,
ओ मेरी गुड़िया ओ रानी,
आ झूल जा मेरे काँधे पे,
ले देख मैं क्या ले कर आया,
वो चूड़ीदार पैजामे और,
वो मीठे बिस्किट का डिब्बा,
इस बड़े महल में दफन हुआ,
वो मेरे बचपन का झूला,
अब एक अँधेरे कमरे से ,
बाहर आने में डरती हूँ,
डर कर कहीं जो मैं चीखूँ,
कौन पूछेगा ,"क्या हुआ हाय!!"
ये कुत्ते, बन्दर और सूअर,
ये कीड़े जिनका नाली घर,
चिपके हैं माँ की छाती से,
मैं कमनसीब उन से बदतर,
सारे सुख हैं पर चैन कहाँ,
बेआरामी संग चलती है,
बस इसी लिए ये ख्वाहिश एक,
अन्दर ही अन्दर पलती है,
जिस तरह से रात की नींदों में,
सपने आ कर सुख देते हैं,
मैं कब्र में भी सपने देखूं,
और मेरी माँ लोरी गाये..
Comment
अब जब ममता से भर कर मैं,
बच्चों को गले लगाती हूँ,
लगता है यूँ मैं उन में हूँ,
और मेरी जगह मेरी माँ
ati sundr pratuti ,badhaai
//ऐसा टाइपिंग पर ध्यान न देने की वजह से हुआ है, क्षमा चाहती हूँ.//
तो फिर ध्यान देने की ज़रूरत है ... :-)))))
आदरणीय सौरभ पाण्डे जी, नमस्कार,
जब भाव घनीभूत हों तो उन्हें ओड़ने शब्द स्वयं दुलकी-दुलकी आते हैं. आपकी प्रस्तुत रचना में कुछ यों ही अनायास-सा होता गया है. भावनाओं को आपने मान दिया है. बहुत-बहुत बधाई.
शुभेच्छाएँ.
ध्यातव्य : ’कि’ को सम्बन्ध कारक के ’की’ की जगह प्रयुक्त नहीं किया जाता.
शैलेन्द्र जी, नमस्कार,
प्रिय महिमा जी,
आपकी उछाह भरी प्रतिक्रियाएं बहुत आश्वासन देती हैं..सच कहूँ, मैं आर्टिकिल पोस्ट करते ही आपका इंतज़ार शुरू कर देती हूँ...भावुक न होइए, छुट्टी में घर जाना है न...:-) :-)
प्रिय सोनम जी,
जिस तरह से रात की नींदों में,
सपने आ कर सुख देते हैं,
मैं कब्र में भी सपने देखूं,
और मेरी माँ लोरी गाये.. आदरणीया सरिता मैम माँ के प्रति समर्पित इस कृति पर मेरी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकार करें
hello mam
i think 13 may ko mothers day mnaya jata h. sure nhi hu. kyonki mammi to dil me rahti hain , kisi khas din unki yaad aaye esa to nhi ho skata na.
very well written . ma jaisa dunia me koi nahi.
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