For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

याद तुम्हारी....

स्नेही मित्रों,  सुना है, 8 मई को मदर्स ' डे मनाया जाता है...यानि कि साल का एक दिन माँ के नाम...इस की शुरुआत कब और क्यूँ हुई, ये मुझे नहीं पता , न जानना चाहती हूँ..बस अचम्भा इस बात का होता है कि मदर्स ' डे की शुरुआत करने वाले ने यह नहीं बताया कि साल के बाकी दिनों में माँ के लिए कौन से जज़्बात रखने हैं...
अगर किसी और दिन माँ को याद करना हो या अपने उद्गार व्यक्त करने हों तो कही उस के लिए कोई सज़ा तो निर्धारित नहीं है...फिलहाल मुझे तो आज ही माँ के लिए कुछ कहना है....मुझे अफ़सोस है कि मैं दिन, महीने का ख्याल नहीं रख पाई..इतना ख्याल ही नहीं आया कि माँ को आज याद न कर के 8 मई को याद करना है....बस यूँ ही.......

मैं खुद से जब थक जाती हूँ,
वो जाने कहाँ से आती है,
आँखें खोलूं या बंद रखूं,
वो ख्यालों में मंडराती है,

ठन्डे नाज़ुक से हाथों से,
पेशानी को सहलाती है,
दिन भर कि धूल से क्या मतलब,
वो प्यार से गले लगाती है,

नाज़ुक हाथों में दो रोटी,
चिमटे से ले कर आती है,
बस एक निवाला और खा ले,
बस ये ही कहते जाती है,

तू इतना क्यूँ थक जाती है,
आ मेरी गोद में सर रख ले,
मैं लोरी एक सुनाती हूँ,
तू सुख कि निंदिया में सो ले ,

फिर नींद मुझे यूँ आ जाये,
कि कोई आहट सरगोशी,
मेरे कानों तक न पहुंचे,
न टूटे मेरी बेहोशी,

मैं यूँ ही उस कि गोदी में,
ये सारी उम्र बिता डालूं ,
फिर काश कभी सूरज न उगे,
ये सपना बस चलता जाये,

कब कैसे कहाँ खुदा जाने,
वो ठंडा आँचल छूट गया,
सब कुछ पाया पर क्या पाया,
अन्दर अन्दर कुछ टूट गया,

दूधों से रोज़ नहाती हूँ,
पूतों से रहती हरी भरी,
जो सिर्फ मुझी पर छलका था,
वो दूध कहाँ अब पाऊं कभी,

अब जब ममता से भर कर मैं,
बच्चों को गले लगाती हूँ,
लगता है यूँ मैं उन में हूँ,
और मेरी जगह मेरी माँ है,

सुनने को कान तरसते हैं,
ओ मेरी गुड़िया ओ रानी,
आ झूल जा मेरे काँधे पे,
ले देख मैं क्या ले कर आया,

वो चूड़ीदार पैजामे और,
वो मीठे बिस्किट का डिब्बा,
इस बड़े महल में दफन हुआ,
वो मेरे बचपन का झूला,

अब एक अँधेरे कमरे से ,
बाहर आने में डरती हूँ,
डर कर कहीं जो मैं चीखूँ,
कौन पूछेगा ,"क्या हुआ हाय!!"

ये कुत्ते, बन्दर और सूअर,
ये कीड़े जिनका नाली घर,
चिपके हैं माँ की छाती से,
मैं कमनसीब उन से बदतर,

सारे सुख हैं पर चैन कहाँ,
बेआरामी संग चलती है,
बस इसी लिए ये ख्वाहिश एक,
अन्दर ही अन्दर पलती है,

जिस तरह से रात की नींदों में,
सपने आ कर सुख देते हैं,
मैं कब्र में भी सपने देखूं,
और मेरी माँ लोरी गाये..

Views: 658

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rekha Joshi on May 17, 2012 at 10:59pm

अब जब ममता से भर कर मैं,
बच्चों को गले लगाती हूँ,
लगता है यूँ मैं उन में हूँ,
और मेरी जगह मेरी माँ 

ati sundr pratuti ,badhaai 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2012 at 12:55pm

//ऐसा टाइपिंग पर ध्यान न देने की वजह से हुआ है, क्षमा चाहती हूँ.//

तो फिर ध्यान देने की ज़रूरत है ...  :-)))))

Comment by Sarita Sinha on May 2, 2012 at 11:24am

आदरणीय सौरभ पाण्डे जी, नमस्कार,

भावों  को मान देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद...सर, मैं ने   ’कि’ को सम्बन्ध कारक के ’की’ की जगह प्रयुक्त नहीं कियाहै, ...ऐसा टाइपिंग पर ध्यान    न देने की वजह से हुआ है, क्षमा चाहती हूँ...

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 1, 2012 at 3:14pm

जब भाव घनीभूत हों तो उन्हें ओड़ने शब्द स्वयं दुलकी-दुलकी आते हैं. आपकी प्रस्तुत रचना में कुछ यों ही अनायास-सा होता गया है. भावनाओं को आपने मान दिया है. बहुत-बहुत बधाई.

शुभेच्छाएँ.

 

ध्यातव्य : ’कि’ को सम्बन्ध कारक के ’की’ की जगह प्रयुक्त नहीं किया जाता.

Comment by Sarita Sinha on May 1, 2012 at 3:02pm

शैलेन्द्र जी, नमस्कार, 

कविता के भावों को समझने के लिए धन्यवाद...
Comment by Sarita Sinha on May 1, 2012 at 3:00pm

प्रिय महिमा जी,

आपकी उछाह भरी प्रतिक्रियाएं बहुत आश्वासन देती हैं..सच कहूँ, मैं आर्टिकिल पोस्ट करते ही आपका इंतज़ार शुरू कर देती हूँ...भावुक न होइए, छुट्टी में घर जाना है न...:-) :-) 

Comment by Sarita Sinha on May 1, 2012 at 2:53pm

प्रिय सोनम जी, 

आप सही कह रही हैं, मदर्स'डे मई माह के दुसरे रविवार को मनाया जाता है...पर कविता लिखते समय मुझे वास्तव में याद नहीं आ रहा था, अफ़सोस भी प्रकट किया था इस बात का...ध्यान आकर्षित करने के लिए धन्यवाद...
Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 30, 2012 at 5:28pm

जिस तरह से रात की नींदों में,
सपने आ कर सुख देते हैं,
मैं कब्र में भी सपने देखूं,
और मेरी माँ लोरी गाये.. आदरणीया सरिता मैम माँ के प्रति समर्पित इस कृति पर मेरी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकार करें

Comment by MAHIMA SHREE on April 30, 2012 at 1:52pm
मैं यूँ ही उस कि गोदी में,
ये सारी उम्र बिता डालूं ,
फिर काश कभी सूरज न उगे,
ये सपना बस चलता जाये,.....हर पल मेरे मन में बस यही चाह होती है

सब कुछ पाया पर क्या पाया,
अन्दर अन्दर कुछ टूट गया, .......सत्य तो यही है

आदरणीय सरिता दी ..
नमस्कार , ओह कितनी सुंदर रचना ..सारे भाव आते गए और भावुक करते गए ..
माँ को लेकर तो रोज भावुक हो जाती हूँ ... पढ़ कर मन हल्का हो रहा है... पता नही क्यूँ !!
शायद आपकी रचना का असर है मन में जो था बाहर आगया इस लिए ...
बहुत-२ बधाई आपको ..
Comment by Sonam Saini on April 30, 2012 at 1:37pm

hello mam

i think 13 may ko mothers day mnaya jata h. sure nhi hu. kyonki mammi to dil me rahti hain , kisi khas din unki yaad aaye esa to nhi ho skata na.

very well written . ma jaisa dunia me koi nahi.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागत है"
6 hours ago
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
Thursday
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Apr 14

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Apr 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Apr 13

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service