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गंग नहाये जात हैं,दूर करै तन पाप।
जौ उनका पापी कहौं,क्योंकर हो संताप॥

माँ पत्नी भगिनी चहौं,ममता सेवा प्यार।
बेटी जनकर दुखी क्यों,हो जाते सरकार॥

आशा मन अच्छा करैं,लोग बाग बर्ताव।
क्यों रखते कुछ एक से,निज मन में दुर्भाव॥

अनुशासन जन में रहे,बना देश कानून।
क्यों होता है तब यहां,रोज कत्ल कानून॥

अंधे से नहि पूछते,बुरे भले की बात।
अंधा तो कानून भी,शरण चले क्यों जात॥

ललचाइ अंखियां लखै,तिरिया बेटी आन।
जौ कोई इनकै लखै,कांहे कहौ पिरान॥

भारत भ्रष्टाचार में,डूबै औ उतराय।
रहा धर्म अवलम्ब जो,निर्मल राखिन नाय॥

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Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 26, 2012 at 10:00pm
बागी सर जी आपने ,रचना दिया सराह।
बहुत बहुत आभार है,मन में खुशी अथाह॥

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 26, 2012 at 9:36pm

विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी , जबरदस्त , सभी दोहें शानदार बन पड़े है, बेहद खुबसूरत, भाव बहुत ही दूरगामी है, बहुत बहुत बधाई स्वीकार हो |

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 26, 2012 at 9:32pm

एक 'क्यों' पहले लिखा,फिर 'क्यों' लिखे आप।
'क्यों' तब मैंने फिर लिखा,रही कृपा सब आप॥

जिस रचना पर आपकी,मिले कृपा सरकार।
क्यों नहि रचना ठीक हो,क्यों नहि होय सुधार॥


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on April 26, 2012 at 9:01pm

बहुत ही सुन्दर दोहावली भाई विन्ध्येश्वरी जी, पढ़ कर मन आनंदित हो गया. सच बताईयेगा ये वाली "क्यों" बेहतर है या पहले वाली "क्यों" जिस पर मैंने "क्यों" लगाया था ?:))))

बहरहाल, आपको हार्दिक साधुवाद.

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 26, 2012 at 5:47pm

महिमा दीदी आपने,रचना पढ़ी हमार।
धन्य रचयिता औ कृती,हार्दिक है आभार॥

Comment by MAHIMA SHREE on April 26, 2012 at 5:24pm
गंग नहाये जात हैं,दूर करै तन पाप।
जौ उनका पापी कहौं,क्योंकर हो संताप॥.... bilkul satik bahut khub


अंधे से नहि पूछते,बुरे भले की बात।
अंधा तो कानून भी,शरण चले क्यों जात॥..... waah aap to vindheshwari bhai kaya khub likha hai badhai swikaar karen
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 26, 2012 at 3:51pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी आपको रचना पसंद आयी रचना व रचयिता दोनों धन्य हुये।हार्दिक आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 26, 2012 at 3:47pm
आदरणीय कुशवाहा जी प्रणाम व हार्दिक आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 26, 2012 at 3:02pm

विन्धेश्वरी जी बहुत संदेशपरक दोहे एक से बढ़कर एक |

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 26, 2012 at 2:50pm

आदरणीय त्रिपाठी जी, सादर. 

बहुत sundar bhav yukt दोहे. पसंद  आये. बधाई. 

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