'ग़ज़ल'
दुआओं से किसी की फल रहा हूँ
निगाहों में तुम्हारी खल रहा हूँ
किसी को भी नहीं मैं छल रहा हूँ
न तो रहमोकरम पर पल रहा हूँ
बुरा था वक्त पीछे छोड़ आया
नहीं भूला जहाँ पर कल रहा हूँ
हिमालय की रुपहली बर्फ पर जा
वतन के वास्ते मैं गल रहा हूँ
दिलों में प्यार की शमआ जलाने
मैं अपनी रहगुज़र पर चल रहा हूँ
दुआयें माँ की अपने साथ में ले
बुजुर्गों का मुसलसल बल रहा हूँ
किसी के प्यार में भूला तुम्हें क्यों
तुझे खोकर हथेली मल रहा हूँ
भुला दूं तुमको कैसे आज जानम्
पहेली तुम तुम्हारा हल रहा हूँ
सियासत से रहो तुम दूर ‘अम्बर’
बुरी है आग नाहक जल रहा हूँ
--अम्बरीष श्रीवास्तव
Comment
धन्यवाद आदरणीय भ्रमर जी ! आपकी सराहना से हृदय में एक नवऊर्जा का संचार होता है ....सादर
दिलों में प्यार की शमआ जलाने
मैं अपनी रहगुज़र पर चल रहा हूँ
दुआयें माँ की अपने साथ में ले
बुजुर्गों का मुसलसल बल रहा हूँ
आदरणीय अम्बरीश जी बहुत सुन्दर भाव लिए गजल ...हिंद और पाक का बाघा बार्डर याद हो आया वहां गुजारे वक्त ...आभार आप का ..माँ की दुवाएं हमारे वीरों के साथ सदा रहें -भ्रमर ५
स्वागत है मित्र शैलेन्द्र जी ! आपका हार्दिक धन्यवाद |
बुरा था वक्त पीछे छोड़ आया
नहीं भूला जहाँ पर कल रहा हूँ
हिमालय की रुपहली बर्फ पर जा
वतन के वास्ते मैं गल रहा हूँ
दिलों में प्यार की शमआ जलाने
मैं अपनी रहगुज़र पर चल रहा हूँ
मुसलसल गजल पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें अम्बरीष सर
नमस्कार महिमा जी, गज़ल को सराहने के लिए आपका हार्दिक आभार !
हिमालय की रुपहली बर्फ पर जा
वतन के वास्ते मैं गल रहा हूँ
दिलों में प्यार की शमआ जलाने
मैं अपनी रहगुज़र पर चल रहा हूँ
आदरणीय अम्बरीश सर , नमस्कार
स्वागत है आदरणीय कुशवाहा साहब , आपका हार्दिक आभार ! बहुत अच्छी पंक्तियाँ कही हैं आपने !
aadarniy ambrish ji, saadar.
chitra hi mere lahoo ke ubal ke liye kaafi hai
gajal to puri ki imtihaan abhi baaki hai.
ye achha hi kiya na likha paimane par
bahah tere intjar main khadi ek saaki hai.
laakh sitam ye kar len rahnuma mere
bah chuka bah raha par abhi bhi lahoo baaki hai.
badhai.
स्वागत है आदरणीया वंदना जी ! गजल की तारीफ़ के लिए तहे दिल से शुक्रिया !
स्वागतम आदरणीय अविनाश बागडे जी ! अशआर की तातीफ के लिए तहे दिल से आपका शुक्रिया !
'हिमालय की रुपहली बर्फ पर जा' में 'जा' का प्रयोग सिर्फ अपने लिए हुआ है | जबकि 'आ' का प्रयोग स्वयं या सामने वाले दोनों के लिए बेहतर है | अतः इसे 'आ' भी किया जा सकता है | बल्कि मैं तो यह कहूँगा कि स्थान की आवश्यकतानुसार दोनों में से कोई भी एक प्रयोग किया जा सकता है !
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