बात इतनी बढ़ी के कहर हो गयी;
हमको बचपन में क़ैदे उमर हो गयी;
*
बात कानों में घुलती शहद की तरह,
रात ही रात में क्यूँ ज़हर हो गयी;
*
कब ये चंदा ढला, कब ये सूरज उगा,
रात आँखों में गुज़री, सहर हो गयी;
*
ज़ेर साया थी दुनिया ये मेरे मगर,
जाने कब ये इधर से उधर हो गयी;
*
मुझको इससे अधिक क्या ख़ुशी होगी अब,
जो लिखी थी ग़ज़ल बा-बहर हो गयी; ---------------- :-)
*
अब तलक तो खुदा को न सजदा किया,
ये दुआ मेरी कैसे असर हो गयी;
*
बात बनते-बनाते चली आई पर,
आज इस मोड़ पर कुछ कसर हो गयी;
Comment
बहुत खूब नीरज द्विवेदी जी सभी शेर खूबसूरत हैं
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