For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

विस्मृति

पोस्त के लाल फूल
असंख्य
उन्हें छूकर बहती प्रमत्त हवा
ठंडी गुफा के मुहाने पर
पालथी मारे बैठा सूरज
देख रहा है फेनिल
धारा का झर-झर झरना ...
झागों के पत्ते अभी टूट कर बिछ गए हैं ..
पतझड़ जो लगा है ..
चट्टानों के बिछौनों पर ...
अपने चारों ओर
देवदार , चीड़ के गुम्बदों में कैद
एक फंतासी ...
जिस पर मखमल -सी बर्फ
अपना आसमान ताने खड़ी है

और ढरक रही है ख़ामोशी ...
तोड़कर कलकल की ध्वनि को ..
जैसे चुप ओठों पर
धर दी हो सर्द उँगली समय की !
लौट आने का मन नहीं ..
इस मानवेतर भीड़ से -
अकेले
दूर क्षितिज के पार
कुछ रेखाएं
आकृतियाँ
कौंध रहीं हैं ...
मेरे प्रयाण का समय आ चला ...
निशब्द
चुप ..
आँखें मुंदने लगी हैं ...
नींद मत तोड़ना...
अपनी गुफा में सोने दो ..
कोई स्मृति नहीं
शरीर नहीं ...
बस "मैं" हूँ
और है निश्चिन्त निद्रा
समय इस नींद से हार
मौन है ...
ये तिलस्म नहीं
एक विस्मृति है मेरे होने की !
अपर्णा

(अपने उन एकांत क्षणों में जब मन निराशा से ओत-प्रोत था .. इस कविता का लिखना हुआ l बीमारी के दौरान लिखी इस कविता में प्रयाण की इच्छा .. किसी गंतव्य तक जाने की इच्छा केवल उन पलों का बोध है I कविता अंतर्मुखी हो गयी है.)

Views: 550

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by aleem azmi on February 8, 2011 at 2:39pm

bahut umda likha hai

tu shaheen hai parwaaz kaam tera

tere aage aasman aur bhi hai

Comment by Aparna Bhatnagar on September 23, 2010 at 9:14pm
धन्यवाद! गणेश जी . आपसे निरंतर जो प्रोत्साहन मिल रहा है , वह निश्चित रूप से हमारा मार्ग प्रशस्त करेगा l

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 23, 2010 at 9:08pm
लौट आने का मन नहीं ..
इस मानवेतर भीड़ से -
अकेले
दूर क्षितिज के पार
कुछ रेखाएं
आकृतियाँ
कौंध रहीं हैं ...
मेरे प्रयाण का समय आ चला ...
बहुत खूब, एक एक शब्द जैसे तौल तौल कर रखी गई है, बेहतरीन कविता, सुंदर भाव,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"लड़ियाँ  झूमें  ओने-कोने,  फूले-फले  त्योहार।...उत्तम कामना है आपकी किन्तु…"
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
" दूर दूर रहना मजबूरी, बिखर गया परिवार।               …"
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ग्राहक सोचे क्या-क्या ले लूँ , और किसे दूँ छोड़.... सच यही स्थिति होती है सजा हुआ बाज़ार देखकर.…"
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत छंद गीत पर आपकी सराहना ने सृजन को सार्थकता प्रदान की है.…"
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, आपको भी दीपोत्सव की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं. प्रस्तुत…"
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, प्रस्तुत छंदों की सराहना हेतु आपका हृदय से आभार. सादर "
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद *****मिट्टी  के  दीपों  की  जगमग,  दीपों  वाला …"
3 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद * शहरों  में  भी   गाँवों  जैसे, सजे  हाट…"
3 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाशजी  दीपावली अन्नकूट भाई दूज और छठ की शुभकामनाएँ । छंद पर आपका प्रयास सराहनीय…"
9 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी, दीपावली अन्नकूट भाई दूज और छठ की शुभकामनाएँ । खिल उठता है बुझा हुआ मन, आते जब…"
9 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी चित्रानुकूल बहुत सुन्दर छंद सृजन। हार्दिक बधाई "
9 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service