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कविता - बहती सी गंगा

 कविता - बहती सी गंगा  
 
 
हमने एक नदी को बाँधा
और अब करते हैं
रेत की पुजैय्या
किनारे रुकी नाव की लाश पर !
 
हमने एक बहती नदी को नाला बनाया
उसमें शहर भर के अपशिष्ट डाले
और अब हर शाम अँधेरे में उस काले नाले की आरती उतार
विदेशी अतिथियों की राह तकते है !
 
हमने किताबों में नदी की महत्ता बताई
रामायण और महाभारत से गंगा के किस्से बच्चों को सुनाये
और अब उन बच्चों को
स्वीमिंग पूल में तैरना सिखा कर
ओलम्पिक गोल्ड मेडल पाने की हसरत संजो रहे हैं
सच मुच हम अपनी इच्छाएं विकास के गाल में डुबो रहे हैं !
 
हम दूर देश से टूर पर आये साइबेरिआइ पक्षी
इस   बार पहले सी गंगा को न पाकर दुखी हैं
मगर  ये  प्रण  है अगली  बार हम ओल्गा  से भर भर चोंच  लायेंगे  जल
और भर देंगे  पहले सी पावन  पवित्र   बहती सी गंगा   !!
 
                              - अभिनव  अरुण  
                                  [15052012]
 

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Comment by Abhinav Arun on May 16, 2012 at 11:23am

हार्दिक आभार आदरणीया राजेश जी रचना आपने पसंद की !

Comment by Bhawesh Rajpal on May 16, 2012 at 9:22am

अभिनव जी  यथार्थ चित्रण के लिए बधाई  !  -भवेश  राजपाल  !

Comment by Rekha Joshi on May 16, 2012 at 12:11am

अभिनव जी ,अति सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 15, 2012 at 11:18pm

और अब उन बच्चों को

स्वीमिंग पूल में तैरना सिखा कर
ओलम्पिक गोल्ड मेडल पाने की हसरत संजो रहे हैं
सच मुच हम अपनी इच्छाएं विकास के गाल में डुबो रहे हैं !..
अभिनव जी सुंदर सन्देश...है तो ऐसा ही ...काश कुछ ध्यान दिया जाए कुछ सुधरे ..जय श्री राधे 
भ्रमर५ 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 15, 2012 at 8:41pm

 अभिनव जी सच में विकास के नाम पर हम अपनी प्रक्रति से ही कट गए हैं न वो गंगा है अब न वो निर्मल नदियाँ इंसान नि उनको कहीं का नहीं छोड़ा क्या दिखाएँगे हम अगली पीढ़ी को ...बहुत सुन्दर सन्देश परक रचना ..बधा

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