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अरबों माल डकार के

अरबों माल डकार के राजा जी गै छूट।
जनहित में संदेश है लूट सके तो लूट।।

निकले जब वो जेल से यूँ दिखलाया रंग।
अभिवादन थे कर रहे जीत लिया ज्यों जंग।।

बाहर आकर वायु मे चुम्बन रहे उछाल।
इतने घृणीत कर्म का कोई नही मलाल।।

हर्षित चेलाराम के जमीं न पड़ते पाँव।
बेशरमी रख ताख पे खुश हो करते काँव।।

झिंगुर घुरवा से कहे "जितबे तुहीं चुनाव।
कट्टा पिस्टल साथ हैं डर जइहैं सब गाँव"।।

  • आशीष यादव

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Comment by Bhawesh Rajpal on May 17, 2012 at 10:18am
बहुत सही चित्रण किया है  आशीष  जी ,  अब तो  नेता की छवि ऐसी हो गई है कि नाम सुनते ही घृणा के भाव आ जाते हैं !
नेता मतलब भ्रष्ट , गुंडा , चोर , और बेशर्म  इतने कि कोई कुछ भी कह ले , इनके चेहरे पर वही कुटिल मुस्कान और विजयी भाव !
अपना घर भरना , स्विस बैंक खाता भरना , कुर्सी के लिए कुछ भी करना ,  जनता में से कोई बोले तो उसके पीछे पड़ जाना  ! इसीलिए  अब राजनीति  शरीफों के लिए नहीं रह गई है  !
--  भवेश राजपाल  ! 
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 17, 2012 at 10:14am

waah waah .....................jai ho ..........

kya baat hai ......ek dam sateek ................kalam bolti hai to raaj kholti hai

ye siyaasi patra vayhaar ki tarah gupt nahi hoti

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